Tuesday, March 30, 2010

लकीरें


काश हाथों में लकीरें न होती ,
यूँ कटी फटी जिन्दगी न होती

कांच की नाजुक दीवारों पे ,
कोई कील चुभी न होती

गिट्टी से खेलती छोटी सी लड़की ,
समय से पहले बड़ी न होती

डोर से कट कर भी पतंग ,
किसी की झोली में गिरी न होती

सीता का अपहरण हुआ न होता ,
धरती भी फटी न होती

Tuesday, March 23, 2010

तुम मिलो तो सही ....


अगले जनम में मिलने का वादा और
खुशबू में भरा ख़त मिला है मुझको

तेरे दर्द का दरिया पी जाऊं मै
अपने अन्दर समंदर मिला है मुझको

सूखे फूल किताबों में मिलें जैसे
हर बार ख्वाबों में मिला है मुझको

तारीख की निगाहों से छुप जायेंगे हम
प्यारा सा इकरार मिला है मुझको

खुद से ही मानूस न थे हम
तुमसे अपना हाल मिला है मुझको

इश्क कि बेवफाइयों से अनजान रहे
बेफिक्री से भरा जाम मिला है मुझको

रास्ता रास्ता ढूँढा किये हम
दिल में तेरा पता मिला है मुझको

Monday, March 15, 2010

और कितने ताजमहल ...

दीदी,,.... " म्हारे पैसे मिल जाते तो यूँ काम अधूरा छोड़कर जाने कि जरुरत न होती"
" पर के करूँ , पैसे भी म्हारे और .... "
कहते कहते रूक गयी और अपने बेटे, जो कि उसके पल्लू को पकडे मुझसे छुपने कि कोशिश कर रहा था , के सर पर हाथ फिराने लगी ....
" अरे ! बता तो क्या हुआ ...?
" क्या बताऊ दीदी , पैसे भी म्हारे , पण म्हारे काम न आये , .... हमने तो उधार भी न मांगे थे ... "
फिर गहरी सांस लेते हुए अपने बेटे को देखने लगी ....कुछ देर रूक कर बोली ...
" ये तो म्हारा जी ही जाने है , सचिन को हस्पताल में भरती किया तो कौन कौन से उधार लेकर हस्पताल का बिल भरा "
बस अब न .....
" अब तो यहाँ जी न लग रा... अपना घर उजाड़ के बस्ती न बनानी है ..... रोड़ी - बजरी से खेले है म्हारे बच्चे पर जान तो उनमे भी है ....सेठों के रहने के वास्ते कोठियां ही कड़ी करनी है न , जो पैसे देगा उसका महल बना ही देंगे .... "
"कंही भी जायेंगे काम तो मिल ही जाएगा |" " इन वाले लाला से हमें कुछ न चाहिए ... बस जा रहे हैं कल .... "
कहकर शांति अपनी मैली धोती के पल्लू से अपने बेटे के मुंह पर लगी रेत पोछने लगी ... मै सोच रही थी , अभी कितने शहंशाह अपने ताजमहल बनाकर कारीगरों के हाथ कटवाएँगे ....?






और सोचने को बाकी क्या रहा

सूरज भी उसको ढूंढ कर वापस चला गया ,
अब हम भी घर को लौट चलें शाम हो चुकी ....

हाल पूछा था उसने अभी ,
और आंसू रवां हो गए ...