Saturday, July 18, 2009

जिंदगी को धुएँ मे उड़ाता....


धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा
उधड़ गये हैं
प्यार के धागे
चुभने लगे हैं
फूल भी यहाँ
रंग चुराए थे
आसमान से मैने
छूते ही मेरे क्यूँ
बदरंग हो गये
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये

Sunday, July 5, 2009



विरह के मारे
दो नैनो में
फ़िर उतर आई धूप ।
कल फ़िर बरसे थे बादल
सबकी आंखों से छुप छुप ।
कच्ची माटी की हांडी सा
रीता था मन ये मेरा ,
न मनन , न कोई चिंतन ,
अटखेली करता था हरदम ,
प्रेम जल जब से भर गया है ,
आशंकित है , भयभीत है ,
मन ये मेरा ,
रूठे जाए है ,
तडपत जाए है ,
आओ फ़िर हमें ,
मना लो तुम .....