Tuesday, March 24, 2009

कुछ लम्हे प्रकृति के साथ ....

आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ,
हवाओं के संग आवारा बन फिरता रहा दिन भर ।
सुबह तो खूब बन ठनकर आया था ,
सब दिशाओं के मन को खूब भाया था ,
ज्यों ज्यों सजा रूप सलोना त्यों त्यों इतराया था ,
यौवन की रूत आते ही मदमाया दिन भर।
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ....
कभी पानी पर पाँव रखा ,
कभी पेडों पर दौड़ लगायी थी ,
कभी इस बादल के पीछे छुप कर ,
उस बादल को खूब छकाया था ,
मनमौजी मस्ताना यूँ ही कुलांचें भरता रहा दिन भर ....
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर .....
अब चाँद की बारी आई ,
सूरज तुमको जाना होगा ,
बड़े ही गंदले दीखते हो ,
नहा धो कर आना होगा ,
कल मिलने का वादा करते जाओ
रात भर विश्राम करेंगे ,
फ़िर मिलकर साथ काम करेंगे दिन भर ।
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ....
हवाओं के संग आवारा बन फिरता रहा दिन भर ....

4 comments:

Anonymous said...

very nice...
poore din ka varnan bahut hi khoobsurat andaz mein kya hai apne....

bahut khoobsurat..

keep it up!

Anonymous said...

is kavita ko padkar bachpan mein baal-bharti ki kahaniya aur poems yaad aa gayi......machli jal ki rani hai...jeewan uska paani hai....
bas kavita ka uddeshya samajh nahin ayyaa....baki bahut khooob....

Anonymous said...

apne prakrati ka skech bade hi manohar style mein pesh kiya hai,kavi ki kalpana ne phir se
bachpan,ths most natural part of one's life,me lauta diya......WONDERFUL...Thank u for composing such a nics creation...

Anonymous said...

BAHUT HEE UTTAM PRAYAAS...... PARANTU Ek criticism hamara aapke naam...I hope this will not hurt you.

Aapkee kavita mein Sooraj ko Mitti mein khelta din bhat, Aawara aur din bhar kulaanchen bharta hua bataaya hai lekin kavita ke unt mein फ़िर मिलकर साथ काम करेंगे दिन भर. Dono mein bahut asamaantaa hai. Dono hee baatein ek doosre ko oppose kar rahee hain.