
धुआं धुआं हो गयी नज़र
तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है ,
एक ज़लज़ला उठा है फिर
मलबे तले जीवन हारा है ,
अंतहीन तलाश है जाऊं कहाँ
लोग कहते हैं नाकारा है ,
तेरी यादों को भूलने के दर्द ने
लकीरों में तेरा नाम उभारा है ,
सांसों को धड़कन की फ़िक्र है
तभी तो तुम्हारा नाम पुकारा है ,
फलसफा तेरी मोहबत्त का
आईने पर पत्थर मारा है ,
सांसें थामने की कोशिश भर
सुबह पे अँधेरा फिसला है ,
औंधे मुंह सुबह लौटी है
आरिज़ पर सन्नाटा बिखरा है ,
ज़ख्म सूख ही जायेंगे
वक़्त रेत पर फिसला है