Tuesday, January 5, 2010

व्हाट इस योर न्यू ईअर रेसोलुशन


ऐ लो जी ...फेर नवा साल आया ऐ ...त्वानू सारयानु बधाइयाँ होण जी ...गिफ्ट लओ , गिफ्ट देओ...मेसेज लओ , मेसज देओ ...पार्टियाँ देओ ते पार्टियाँ लओ ...गुब्बारे फोड़ो ते केक कट्टो...नचने गाण दा फ्लोर तोड़ो ...
अरे अरे ...तुसी एवे हीं बुरा मान गए ...
तुसी नाचे सी , फ्लोर नि तोड्या सी ...
माफ़ी जी माफ़ी ...मेरे क्यान दा मतलब नवे साल दा जोश दे नाल स्वागत करन दे नाल हया ...
नवे नवे सालां दे सवालां दे उत्तर दें वास्ते तैयार हो जाओ जोश दे नाल ...नवे साल दे नवे सवाल ...हुन सवाल वड्डे होणगे या निक्के ऐ ते पता नई.......
कि कया...? हुन क्यों नई पता ...?
ब्रावा .. मै ते पंडित ते है नई मै त्वानू कि दासां सवाल निक्के होणगे कि बड्डे ...
दिन ते महीने ते साल एवे ही निकल दे जानगे....साल दी कि ऐ एते ही निकल जांगा ....वडिया वडिया गलां करने दा इक होर नवा साल आ गे ऐ .... गल्लां ते वडिया वडिया करो नि ...क्यूँ जी हैं जी ...
वड्डे वड्डे लोगन दियां वडिया गल्लां ...तुसी निकिया निकिया गल्लां कर रहे हो ...जैसे मै इस साल डाईटिंग करंगा , मै इस साल थाली तियों मिठाई कडके अलग कर देयंगा ...या जैसे कि असी मियां बीवी झगडा नहीं करांगें...या हर मंगल ते हर शुकर मै व्रत रखंगी ....ऐ निक्के निक्के काम ते होंदे ही रहेंगे ...कुछ वड्डी वड्डी गलां करो तां कुछ गल बणे....
ता ...कि वादा कित्ता तुस्सी ....?
किन्ने नाल ...?
किसी दे नाल विच ...
सारी दुनिया विच कोई ते होगा ....
नि ते अपने आप नाल ते कित्ता ही होगा .... जैसे "गल्लां घट ते काम ज्यादा" ..ऐ मेरा वादा ....
चलो हुन तुस्सी दस्सो ...ऐ त्वाडी बारी ....

Thursday, December 24, 2009

हैप्पी क्रिसमस ....



यूँ तो त्यौहार किसी विशेष उम्र से जुड़ा नहीं है .... पर बच्चों में इसके प्रति कितना लगाव है ये तो संता क्लाज़ की बढती लोकप्रियता से पता चलता है ... वैसे तो सारा जादू तो बाज़ार का चलाया हुआ है पर उसकी एक अच्छी बात यह है कि कोई भी फेस्टिवल किसी विशेष धर्म का होकर सभी का हो गया है .... बच्चे छोटे थे तो क्रिसमस स्पेशल सॉक्स दीवार पर लटकाया करते थे जिसका मतलब था संता क्लाज़ से प्रार्थना , गिफ्ट के लिए ...और सुबह को मिला करते थे गिफ्ट , उनके तकिये के नीचे ....बस बच्चों की ख़ुशी में हमारी ख़ुशी ....
कितना मासूम होता है बचपन .... ...और कितना शैतान भी....मगर जितना शैतान उतना दिल के करीब ....




वो बचपन नादान आवारा था ,
मगर फिर भी कितना प्यारा था....
धूप बातें करती थी
कमीज की बाँहें मोड़ कर ,
परछाईयां लम्बी होती जाती थी
शामों का हाथ पकड़कर ,
शैतान गलियों संग
फिरता मारा मारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था .....
मीठी सुबहें चखते थे तो ,
दोपहर नमकीन हो जाती थी ,
माँ की आवाज में छोटी बहन तुतलाती थी ,
मार खा कर भी
पिता की आंखों का तारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था ....
छूकर हमको छुप जाती थी ,
ऐसी खिलनदड हवाएं थी ,
आंखों पर पट्टी बाँध कर
ढूंढती हमें दिशाएँ थी ,
शहंशाह थे हम अपने दिल के
ताज हमारा , तख़्त हमारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था...
होली दिवाली ईद क्रिसमस
सब पर गले मिलते थे ,
गोल गोल फिरकी बनकर
आँगन में नाचा करते थे ,
जेठ, शिशिर, माघ औ फागुन
हर मौसम हमको प्यारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था.....



Sunday, December 6, 2009

एक नगमा गाने को जी करता है


ऐ रात उतर आ आखों में
सपने देखने को जी करता है ...
फूल , बाग़ और खुशबू बहुत देखी
समंदर , झील और नदिया भी देखी
रूप बदलते इंसान भी देखे
गले मिलते जमीन और आसमान भी देखे
तारों की डोली से उतरते चाँद देखे
ज़री वाले घर आँगन भी देखे
ढेर सी बातें करने को जी करता है ...
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....
खिलखिला कर हंस देंगी खिड़कियाँ
दिल के दर खोल देंगी खिड़कियाँ
सीढियां टाप कर घर आ जाना
मेरे गालों पर फिसल जाना
पाकीजा हैं मेरी खूशबूयें
रंग भरती हैं कूचियाँ
फ़िर कसमे खाने को जी करता है ...
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....
सरगोशियों से काम न चलेगा
तस्वीर से निकल कर आ जाना
चाँद की बरात सजी है
तुम भी सज संवर जाना
तारों से मांग भर लेना
अपना आँचल लहरा देना
प्यारा सा गीत गाने को जी करता है ....
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....

Monday, November 23, 2009

परदेस

गली में क्रिकेट खेलते लड़कों की खरखराती तीखी सी आवाज ....पता चलता है लड़के जवान हो रहे हैं आउट .......जब कोई लड़का आउट हुआ तो सारे चिल्लाये ....बस बेटिंग करने वाला बच्चा उर्फ़ लड़का ....नहीं , नहीं ...मेरे बैट से तो बॉल टच ही नहीं हुयी ...फ़िर मै आउट कैसे ?
पर सारे लड़कों ने मिलकर उसे आउट कर दिया ... भुनभुनाता हुआ पहुँचा मम्मी के पास ...
मुंह फुलाकर बैठा है ... ओफ्फ्फो ...इस लड़के का क्या करूँ रोज लड़कर आता हैं ...
आज क्या हुआ ....?
( चुप्पी)
चलो हाथ मुंह धो लो कुछ खाने को देती हूँ
कल सामने वाले भटनागर साब के यहाँ बॉल चली गई थी तब भी सहायता के लिए पुकार ....मझधार में बेडा पार कराने वाली मैया ...
मैया मोरी मै नहीं छक्का लगाओ ...न जाने कैसे बॉल अंकल के आँगन गिरी ...
उन्होंने बॉल छुपाओ ...
मैया मोरी ...
फ़िर से माँ ...
बसंत पंचमी आती ...पतंगों का मौसम , स्कूल से बंक, सुबह से पतंगों की पिटारी , चरखी और मंझा ...
चलो आसमान छु आयें ....
वो काटा .... उधर पतंग कटी , इधर मंझे से ऊँगली ....फ़िर याद आई मम्मी ...

अब बेटा विदेश चला गया हैं अब माँ को बेटे की याद आती हैं ... बेटा ,..... तेरी चरखी , तेरा मांझा , तेरी गेंदें ...सब मैंने संभाल कर राखी हैं ....
तू कब आएगा बेटा ....

Wednesday, November 4, 2009








सुलग
रहा है दिल उठ रहा है धुआं
दरवाजा खोल दे या आग बुझा दे यारां
मुफलिसी के दोरों से गुजरता चला गया
सोना , पाना अच्छा न था और खोना बुरा यारां
सच्चे दिल की दुआ कुबूल होती है
सजदे में सर झुके या हाथ उठें यारां
चौखट का दिया हूँ रौशनी कर ही जाऊंगा
चाँद लम्हों की मोहलत तो दे मुझे यारां
मुरीद हूँ आसमान का मै भी चाँद की तरह
कि झील में गिरकर भी बुझता नही यारां
सर उठा कर लहरों ने मदद को पुकारा था
किनारे पर आकर दम तोड़ गयीं यारां

Tuesday, October 20, 2009


आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं ...पूरे साल ये दीप यूँ ही जगमगायें ... आप सब राम और रावणकी इस घुमक्कडी का मज़ा लें ...फ़िर आयेंगे ब्लॉग पर एक नई पोस्ट के साथ... रावण- प्रभु , आज आपने यह अति उत्तम किया जो मुझे भी अपने साथ प्रथ्वी भ्रमण पर ले आए ... आज तो वसुंधरा अत्यधिक जगमगा रही है ....प्रतीत होता है की किसी उत्सव का आयोजन किया जा रहा है ... भ्रमण पर निकले तो देख भी लिया , वरना मै तो प्रत्येक दिवस की भांति स्वर्ग अप्सराओं के नृत्य गान और मदिरा पान में ही रत रहता
राम - तभी तो कहता हूँ रावण , थोड़ा भ्रमण भी किया करो ...सिंहासन पर बैठे बेठे , देखा नही तुम्हारा उदर ... वैसे भी तुम दस मुंह से भोजन करते हो , दशानन
रावण - ये क्या प्रभु ! नारद, ब्रम्हा यहाँ तक की स्वयं प्रभु महादेव भी अब तक मेरे उदर को देखकर व्यंग्य करते थे अब आपने भी मेरे साथ हास्य प्रारम्भ कर दिया ...अब मै कदापि आपके साथ भ्रमण को नही जाऊँगा
राम - नही नही , प्रिय रावण .... मै तो बस यूँ ही ...थोड़ा विनोद कर रहा था ...हाँ , तो तुमने प्रश्न किया था की प्रथविवासी किस उत्सव का आयोजन कर रहे हैं ....तो हे लंका पति , ये सब मेरे हेतु ही प्रायोजित है ...मेरे राज्याभिषेक की जयंती मनाकर ये लोग अपने कार्यालयों , एवं निवासों को दीपो से , आई मीन , चाइनीज झालरों से सजाते हैं ....
रावन - क्या ! आपके राज्य भिषेक की जयंती ....मेरे राज्याभिषेक पर तो कभी प्रजा ने ऐसा उत्सव नही मनाया ...
राम - क्या तुम्हे मेरे प्रति इर्ष्या की भावना उत्पन्न हो रही है
रावण - नहीं , इर्ष्या तो कदापि नही , परन्तु ....
राम - परन्तु क्या लंकेश ! मैंने तो तुम्हे सीता अपहरण के पहले ही आगाह किया था , पर , तुम तो फ़िर तुम हो .....
रावण - यह तो सत्य है प्रभु , परन्तु कल ही मैंने समाचार पत्र में एक स्त्री के अपहरण और बलात्कार का समाचार पढ़ा था और कल क्या ! ऐसी घटनाओं का विवरण में आए दिन प्रथ्वी लोक के समाचार पत्र में पढता ही रहता हूँ ...प्रथ्वी पर तो मनुष्य दैनिक न जाने कितने अपहरण करता है फ़िर उन्हें म्रत्यु दंड भी देता है ...मैंने तो मात्र एक अपहरण ही किया था , जानकी का , और उनकी इच्छा विरूद्व उनका स्पर्श भी नही किया था ....तदापि मैंने यह कुकृत्य आपसे , अपनी बहन सूर्पनखा का प्रतिशोध लेने के लिए किया था
राम - ( हँसते हुए ) जैसा भाई वैसी बहन ...एक करेला तो दूजा नीम चढा ...
रावण - क्या कुछ कहा आपने ?
राम - नहीं नहीं , कुछ भी तो नहीं , तुम आगे कहो ..क्या कह रहे थे ...?
रावण - जाने दीजिये , यह बताइए , की यहाँ , इस बड़ी सी इमारत में प्रकाश की चकाचौध और इसके सामने , वहाँ , कुटी जैसे दिखने वाले घर में अन्धकार ...ऐसा क्यूँ ? क्या आपके राज्य में भी ऐसा ही होता था ...? परन्तु मैंने स्वर्ग में तो ऐसा नही देखा ...
राम - यह मेरी नहीं , लक्ष्मी जी की माया है ...कहीं प्रकाश तो कहीं अन्धकार छाया है ...
रावण - तो अब ये प्रथ्वी वासी अब और क्या प्रायोजन करेंगे ...?
राम - करेंगे क्या.... तुम्हारा पुतला तो पहले ही दशहरे पर जला चुके हैं ....अब बस मेरे अयोध्या आगमन की खुशी में मिष्ठान वितरित करेंगे और रात्री को लक्ष्मी पूजन का आयोजन करेंगे
रावण - क्या प्रभु ...? मेरा पुतला जलाया ...मगर क्यूँ ...?
राम - क्यूंकि तुमने मर्यादायों का उलंघन किया , अतः तुम अधर्म के प्रतीक हुए अंततः तुम्हारी प्रतिमूर्ति बनाकर उस अधर्म का नाश करने हेतु उसे अग्नि में भस्म कर दिया
रावण - परन्तु मुझसे ज्यादा अधर्मी तो ये लोग हैं में तो महादेव जी के वरदान और अमृत कुंद प्राप्त करने से अभिमानी हो गया था
राम - उसी अभिमान का परिणाम तुम्हे भुगतना पड़ा
रावण - ( सोच में ) .....
राम - क्या सोच रहे हो ?
रावन - सोच रहा हूँ प्रभु , मेरे एक अभिमान का मुझे भयंकर परिणाम भुगतना पड़ा , फ़िर इन प्रथ्विवासियों के पास तो कोई वरदान या अमृत भी नहीं है , फ़िर इन्हे किस बात का अभिमान है ...?
राम - अभिमान है इन्हे अपनी बुद्धिमता का ...मनुष्य सोचता है कीइसका प्रयोग कर वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है और रात दिन इसी उधेड़बुन में लगा रहता है यही नहीं , अपितु इनमे लोभ और परस्पर इर्ष्या भी निवास करती है ये नहीं जानते , जो ये कर रहे हैं , इसके कितने भयंकर परिणाम म्रत्युप्रांत भुगतने होंगे और म्रत्युप्रांत ही क्यूँ , इस जीवन में , इस लोक में भी ....
रावण - प्रभु , आपके दरबार में न्याय ही न्याय है आपकी जय हो
राम - वो देखो लंकेश ! चलते चलते तुम्हारी लंका आ गई
रावण - कहाँ प्रभु ! आह ...मेरी लंका ...मेरी प्यारी लंका ....
राम - जानते हो , आज भी लंका निवासी तुम्हारी पूजा करते है , यहाँ तुम्हारी प्रतिमूर्ति जलाई नही जाती , वरन पूजा होती है
रावण - ऐसा क्यूँ प्रभु !
राम - क्यूंकि तुम उस समय ज्ञानी राजा एवं महादेव के परम भक्त थे
रावण - नामामिमिशान निर्वान्रूपम
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं
निजाम निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश्वासम भाजेयम
निराकार ओमकार मुलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतित्मीषम गिरीशं
करालं महाकालं कृपालं
गुनागार संसारपारं नातोहम
अहोभाग्य प्रभु , आज आपके साथ भ्रमण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ....बस चलते चलते एक समस्या का समाधान और कर दीजिये
राम - कैसी समस्या रावण ? कहो ....
रावण - यह जो पाठक हमारे वार्तालाप को पढ़ रहा है , उसके ह्रदय में एक पीड़ा रह रह कर उठ रही है
राम - कैसी पीड़ा दशानन ...?
रावण - यही की में पापी होने हे उपरांत भी स्वर्ग में कैसे ? आपने भी मुझे की एपवाली दीपावली की बस आप इस पाठक की समस्या का समाधान कर दीजिये
राम - हा..हा ...लें ... इस पाठक में अत्यधिक बुद्धि का समावेश है रावन ...इसे स्वयं ही सोचने दो ....मनुष्य के आगे सारे भेद खोलना उचित नहीं ...चलो हम प्रस्थान करें ...
रावण - चलिए प्रभु ....जैसा आप उचित समझें ....

Saturday, October 10, 2009

दीवाली



जाने क्यूँ लगा है मुझे
कि आज दीवाली है ...
फ़िर कोई राम यहाँ
शायद आने वाला है ...
जिसके लिए घर आँगन
अपनी अट्टालिकाओं पर
दीपमालाएं सजाकर
चहक उठे हैं ...
जिनकी राहों में
बिछे हैं फूल सुगंध ...
लोगों की आस भरी
पलकें बिछी हैं ...
ढह जाएँगी मगर
उमीदों की दीवारें तब ...
फ़िर भेष बदलकर
रावन खड़ा होगा जब ....