कॉफी का मग कुछ किताबें थोड़ी परछाइयां और शाम का साया इन सबके छुप कर चले आते हो तुम अंकुर जी ने सहीं कहाँ यादों को भला कौन बांध सकता हैं। यादें तो चलती हुईं हवा की तरह होती हैं बहते हुएं पानी की तरह होती हैं। जो अपना रास्ता बनाना जानती हैं। कम शब्दों में सुन्दर शब्द रचना। http://savanxxx.blogspot.in
7 comments:
यादों में भला किसकी बाधा बन सकती।
कॉफी का मग
कुछ किताबें
थोड़ी परछाइयां
और शाम का साया
इन सबके छुप कर चले आते हो तुम
अंकुर जी ने सहीं कहाँ यादों को भला कौन बांध सकता हैं।
यादें तो चलती हुईं हवा की तरह होती हैं
बहते हुएं पानी की तरह होती हैं।
जो अपना रास्ता बनाना जानती हैं।
कम शब्दों में सुन्दर शब्द रचना।
http://savanxxx.blogspot.in
वाह ... क्या बात है ...
अच्छा लगा ...इतने लंबे समय बाद यहां आपका कॉफ़ी और किताबों के साथ शाम बिताना। आभार!लिखते रहिए!
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Bahut achha laga..dubara padhkr aapko...
kha gum...the...
awosome
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