Wednesday, January 18, 2017

       कॉफी का मग
      कुछ किताबें
     थोड़ी परछाइयां
   और शाम का साया ...



इन सबके छुप कर चले आते हो तुम ..... 

7 comments:

Ankur Jain said...

यादों में भला किसकी बाधा बन सकती।

Unknown said...

कॉफी का मग
कुछ किताबें
थोड़ी परछाइयां
और शाम का साया
इन सबके छुप कर चले आते हो तुम
अंकुर जी ने सहीं कहाँ यादों को भला कौन बांध सकता हैं।
यादें तो चलती हुईं हवा की तरह होती हैं
बहते हुएं पानी की तरह होती हैं।
जो अपना रास्ता बनाना जानती हैं।
कम शब्दों में सुन्दर शब्द रचना।
http://savanxxx.blogspot.in

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... क्या बात है ...

मनोज भारती said...

अच्छा लगा ...इतने लंबे समय बाद यहां आपका कॉफ़ी और किताबों के साथ शाम बिताना। आभार!लिखते रहिए!

Book River Press said...

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Unknown said...

Bahut achha laga..dubara padhkr aapko...

kha gum...the...

awosome

Daisy said...

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