Monday, September 12, 2011

सोशल वर्क ....

मिसिस गुप्ता जल्दी जल्दी काम निपटा रही थी .. . आज क्लब का सोशल वर्क के लिए जाना है .... उफ्फफ्फ्फ़ .. कितना काम है .. कपडे आज धोउं या न धोउं .. उधेड़बुन चल रही है मन में ... अरे ... साडी कौन सी पहन कर जाउंगी .. ये भी देखना है .. प्रेस फोटो ग्राफर भी आयेंगे .. फोटो अच्छी सी आनी चाहिए .. नाश्ता क्या बनाउंगी .. छोड़ो .. आज हलवाई से जलेबी और कचोरी माँगा लेती हूँ ... वही नाश्ता हो जायेगा ... अलमारी खोली ... साडी ... साडी ... कौन सी ... सलवार सूट तो ठीक नहीं रहेगा ... वैसे भी वृद्ध आश्रम जाना है ..... वो लोग साडी ज्यादा पसंद करते हैं .... साडी . हाथ में खूब साडी चूड़ियाँ ... माथे पे बड़ी सी बिंदी ... पूरी तरह घर की बहु ही दिखनी चाहिए .... ऐसे कामो के लिए साडी ही ठीक रहती है .. ज़रा धीर गंभीर से दिखाई देती है ... पीली साडी पर निगाह गयी ... ये ..... नहीं ये तो मैंने पिछले महीने जब पिछड़ी बस्ती में गए थे तब पहनी थी ... और पिंक वाली तो जब मंदिर में हवन करवाया था तब पहनी थी .. फिर क्या पहनू ... ? समझ ही नहीं आ रहा ... हाँ .... ये लेमन येल्लो वाली भी तो है ... ये ठीक रहेगी ... पिछली बार जब वृद्ध आश्रम गए थे तो तो खन्ना अंकल को मेरी साडी बहुत अच्छी लगी थी ... कह रहे थे , सबसे ज्यादा सुन्दर मै ही लग रही थी .. .. आज भी उनको ये साडी अच्छी लगेगी ...उनके लिए स्पेशली एक गिफ्ट भी लिया है मैंने ... बड़े अच्छे हैं बेचारे ...
सुबह से अपनी तैयारी करते करते कब दस बज गए ... मिसिस गुप्ता को पता ही नहीं चला ... घडी देखी तो भागी नहाने .... फटाफट रेडी हो कर आईने के सामने खडी हो गयी ... अपने छोटे छोटे बालों को संवार कर दोनों हाथों में चूडियाँ पहनी ... सेंडल पहने ... लो जी .. रेडी ... चलें ... खाना तो वह लेकर जायंगे ही ...
घर लौक कर दिया ... बस आने ही वाली है क्लब की और भी सदस्याएं .... तभी दूर से गाडी आती हुयी नज़र आ गयी ... चलो जी आ गयी .... राईट टाइम ....
हाय .... हेल्लो हुयी और सब चल दिए ...
आश्रम में इस बार पांच महिलाए और चार पुरुष हैं .. पिछली बार बारह लोग थे पांच लोगो की म्रत्यु हो गयी थी ...
दो लोग नए आ गए हैं .... खन्ना अंकल भी दिखयी नहीं दे रहे ... उनके रूम पार्टनर बैठे हैं .. दो कदम ही आगे बढ़ पायी होंगी कि मिसिस गुप्ता के कदम रुक गए .... वो आगे न बढ़कर पीछे बैठी आंटी से बातें करने लगी .... बातें तो कर रही थी पर कनखियों से उन्ही अंकल को देख रही थी मिसिस गुप्ता ...जैसे पहले से उन्हें जानती हों... उन्हें नज़रें बचाते देख अंकल भी अपने रूम में चले गए जैसे उन्हें इस सेवा कार्य से नफरत हो या वो उन कनखियों से देखती आंखों का सामना करने में स्वयं को अक्षम पा रहे हों ... जिस बहु ने उन्हें घर में रखकर उनकी सेवा करने से मना कर दिया था उसी बहु को यहाँ शर्मिंदा नहीं होने देना चाहते थे |

3 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

समाज की कड़वी सच्चाई से रूबरू कराती कहानी...
सार्थक लेखन के लिए बधाई.

संजय भास्‍कर said...

सार्थक लेखन के लिए बधाई
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

AmitAag said...

Hi Renu!
Read many of your posts. You're a wonderful writer!