त्रिवेणी
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१.... आड़ी तिरछी रेखाओं में ,
रंग उभरे नहीं अभी तक,
अधूरे कैनवास पर प्यार लिख गया कोई .....
२.... कैसे कैसे वादों से मिलकर ,
रेत की दीवारें खड़ी की हैं,
आंसू गिरा गर कोई , बिखर जायेंगी .....
३... सुख बांटा जो अपना , दुःख पाया ,
लोग लगे जलने ,
तन्हाईयाँ मिली गर दुख बांटा अपना .....
४... मंजिल पाने की चाहत मत पालो ,
राहों पर निगाह डालो ,
कोई ख्वाब मचल रहा हो शायद .....
५... आज फिर छत्त पर मोर नचा है ,
आसमान पर बादलों का पहरा है ,
दामन फैलाऊं तो बरसात हो शायद .....
६... महक उसकी छू गयी मुझको ,
रंग ही रंग बिखरा गयी अब तो ,
देखें जिन्दगी कितनी दूर लेकर जायेगी ....
७... गुमनाम को नाम दिलाकर ,
मुझसे मेरी पहचान करा दी ,
फिर कीमियागर को परस मिल गया कोई .....
८... कल मिटटी से पैदा हुआ था ,
कल मिटटी में ही मिल जाना है ,
आज भी अपनी जड़ों को ढूँढता है दिल ......
९... दिन रात सींचा करते है लम्हों का पेड़ ,
फल पककर टपक जाता है खुद ही ,
देखो कच्चा पल न तोडना डाल से .....
10... चाँद , रात और आसमान ,
एक त्रिवेणी वहां भी है ,
एक त्रिवेणी यहाँ भी चाहिए ,......
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१.... आड़ी तिरछी रेखाओं में ,
रंग उभरे नहीं अभी तक,
अधूरे कैनवास पर प्यार लिख गया कोई .....
२.... कैसे कैसे वादों से मिलकर ,
रेत की दीवारें खड़ी की हैं,
आंसू गिरा गर कोई , बिखर जायेंगी .....
३... सुख बांटा जो अपना , दुःख पाया ,
लोग लगे जलने ,
तन्हाईयाँ मिली गर दुख बांटा अपना .....
४... मंजिल पाने की चाहत मत पालो ,
राहों पर निगाह डालो ,
कोई ख्वाब मचल रहा हो शायद .....
५... आज फिर छत्त पर मोर नचा है ,
आसमान पर बादलों का पहरा है ,
दामन फैलाऊं तो बरसात हो शायद .....
६... महक उसकी छू गयी मुझको ,
रंग ही रंग बिखरा गयी अब तो ,
देखें जिन्दगी कितनी दूर लेकर जायेगी ....
७... गुमनाम को नाम दिलाकर ,
मुझसे मेरी पहचान करा दी ,
फिर कीमियागर को परस मिल गया कोई .....
८... कल मिटटी से पैदा हुआ था ,
कल मिटटी में ही मिल जाना है ,
आज भी अपनी जड़ों को ढूँढता है दिल ......
९... दिन रात सींचा करते है लम्हों का पेड़ ,
फल पककर टपक जाता है खुद ही ,
देखो कच्चा पल न तोडना डाल से .....
10... चाँद , रात और आसमान ,
एक त्रिवेणी वहां भी है ,
एक त्रिवेणी यहाँ भी चाहिए ,......
11 comments:
सभी त्रिवेणियाँ सार्थक और सटीक हैं!
. कैसे कैसे वादों से मिलकर ,
रेत की दीवारें खड़ी की हैं,
आंसू गिरा गर कोई , बिखर जायेंगी .....
सारी त्रिवेणियाँ बहुत अच्छी लगीं ..
adbhut, akalpniye....
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत ही शानदार
बादलों की बीच रह-रह कर टिमटिमा उठनेवाले तारे की तरह संवेदनाएं भी चमकी हैं और खूबसूरती से अपनी गहनता संग त्रिवेणी में ढल गई हैं।
मंजिल पाने की चाहत मत पालो ,
राहों पर निगाह डालो ,
कोई ख्वाब मचल रहा हो शायद .
बहुत खूब ... हर त्रिवेणी लाजवाब .... ये खास पसंद आई ...
कैसे कैसे वादों से मिलकर ,
रेत की दीवारें खड़ी की हैं,
आंसू गिरा गर कोई , बिखर जायेंगी .....
हरेक त्रिवेणी लाज़वाब..बहुत सार्थक और मर्मस्पर्शी..
Bahut Sundar abhivyakti...
मंजिल पाने की चाहत मत पालो ,
राहों पर निगाह डालो ,
कोई ख्वाब मचल रहा हो शायद .....
ye pukhraaj apni chamak kho raha hai...issse zaaari rakhein
दो महिने से कोई अपडेट नहीं?? सब ठीक ठाक तो है...
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