काश हाथों में लकीरें न होती ,
यूँ कटी फटी जिन्दगी न होती
कांच की नाजुक दीवारों पे ,
कोई कील चुभी न होती
गिट्टी से खेलती छोटी सी लड़की ,
समय से पहले बड़ी न होती
डोर से कट कर भी पतंग ,
किसी की झोली में गिरी न होती
सीता का अपहरण हुआ न होता ,
धरती भी फटी न होती
16 comments:
देखिये उस पेड़ को ,तनकर खड़ा है आज भी ,
आंधीयों का काम चलना है ,चलीं ,तो क्या हुआ ?
क्या बात है जी बहुत अलग आंदाज है , धन्यवाद
kaash !!!
in saari baaton par hamara bas chalta......
khair bahut achhi rachna......
कविता बहुत अच्छी है....नयापन लिये हुए है..
वैसे एक शायर के शेर का भावार्थ है-
तकदीर उनकी भी होती है,
जिनके हाथ नहीं होते.
सुन्दर रचना
बढ़िया अलग तरह की रचना!!
गिट्टी से खेलती छोटी सी लड़की ,
समय से पहले बड़ी न होती
per aisa kahan hota hai......aam gharon me betiyaan saal bhar me badi ho jati hain aur nirantar badi hoti jati hain......
mann ke umra ki koi pahchaan nahin hoti
kuch bimb kamaal ke hain... kavita kuch behad alag chizon ki taraf dhyan dila gayi
achchhi panktiyaan hain
डोर से कट कर भी पतंग ,
किसी की झोली में गिरी न होती
काश ये सब न हुवा होता ....
पर समय किसकी सुनता है ...
बस अपने क़िस्से बुनता है ...
meri nayi rachna jaroor dekhein, aapki pratikriya ka intzaar rahega....
अलहदा अंदाज अच्छा लगा
डोर से कट कर भी पतंग , किसी की झोली में गिरी न होती
सीता का अपहरण हुआ न होता , धरती भी फटी न होती
bahut sundar panktiyaan ,saath me shahid ji ke sher bhi khoob rahe .
Bahut,bahut sundar...alfaaz nahi..
bahut accha andaz
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