जाने क्यूँ लगा है मुझे
कि आज दीवाली है ...
फ़िर कोई राम यहाँ
शायद आने वाला है ...
जिसके लिए घर आँगन
अपनी अट्टालिकाओं पर
दीपमालाएं सजाकर
चहक उठे हैं ...
जिनकी राहों में
बिछे हैं फूल सुगंध ...
लोगों की आस भरी
पलकें बिछी हैं ...
ढह जाएँगी मगर
उमीदों की दीवारें तब ...
फ़िर भेष बदलकर
रावन खड़ा होगा जब ....
22 comments:
दीवाली की शुभकामनाएँ ।
पर मेरा मन तो आज बहुत उदास है... कहीं से नहीं लग रहा की आज दिवाली है...
यूं भी रावण मौजूद है कितनी जुदा जुदा शक्लो में /कितने मनो के भीतर /कितने सालो से /रावण तो अमर है /सुना है राम तब से वनवास में है
इंतजार की एक शिद्दत सीहै इस कविता मे जिसे दीवाली जैसे त्योहारों का कर्ब पा कर बस गहराना ही है..बधाई
Festival Celebration
Happy Deepawali...
Rawal will kill everytime....
Satyamev Jayate...
दीपावलि की बधाई।
राम और रावण दोनों ही मन के अन्दर हैं। राम को अपनाओ तो मन खुशियों से भर जाता है और कही रावण को अपना लिया तो निराशा ही निराशा नज़र आती है। दिन वही होता है, परिस्थितियाँ वही रहती है, बस मन की सोंच का अन्तर रहता है।
सुंदर.
दीपावली की शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर तस्वीर है.
रचना के बारे में तो क्या कहूँ..हमें भी इन्तजार है एक राम का.
सच है ........ आज gali gali में raavan ghoom रहे हैं .......... raam तो bahoot मुश्किल से ...... शायद diwaali के aas पास ही milte हैं वो भी prateekon के maadhyam से ............ behad prabhaavi rachna है apki ........
ढह जाएँगी मगर
उमीदों की दीवारें तब ...
फ़िर भेष बदलकर
रावन खड़ा होगा जब ....
बहुत सुन्दर रचना
, रावण अब तो भेष भी नही बदलते यूँ ही आ खडे होते है.
bahut pyari kavita hai...apne to mith ko hi ulta dia...bahut khub....
ढह जाएँगी मगर
उमीदों की दीवारें तब ...
फ़िर भेष बदलकर
रावन खड़ा होगा जब ....
बहुत सुन्दर रचना
सच मुच पुखराज का पीस है ये बधाइ
raavan Ram ka bhesh badalkar aa rahe hain
kalyug ke ravan satyug se bhi aage hai .ab to sadharn logo ki soch bhi kuchh is tarah hai ----tum satyug ki sita nahi ban sakti ,main ramayan ka ram nahi ,
ye kalyug hai satyug nahi .har pal ki ladai ......
rachna sundar hai aur bhav umda .
RACHANAA BEHAD BHAW PURN OUR SHABD CHITRAN KHUBSOORAT HAI ........RAWAN AAJ BHI JINDA HAI PAR RAM NA JANE KOUN SE WAN ME...........
बहुत सुंदर भाव है, लेकिन रावण से केसा डर, जब आये तो उस से लडो राम बन कर. धन्यवाद
राज जी , हमारे भीतर का भय ही सबसे बड़ा रावण है ...जिससे हर इंसान हर वक़्त लड़ता रहता है ...परिस्थितियों पर हमारा वश ही कब चलता है ....इंतज़ार तो बस राम का है ...
समीर लाल जी को भी इंतज़ार है राम का ...समीर जी रचना पसंद करने का शुक्रिया ...रचना के साथ दिखयी गयी तस्वीर पिछले साल दिवाली के अवसर पर बनायीं मेरी रंगोली की है जो मैंने अपने द्वार पर बनायीं थी ...पसंद करने का धन्यवाद ....
रावन वो नेक ब्रह्मण था जो अपने अंहकार के वशीभूत होकर बुराईओं का प्रतीक बन गया ....दिवाली पर राम की पूजा करते हुए भी रावन को कोई नहीं भूलता ...ऐसा क्यूँ है ...इस केरेक्टर पर बहुत कुछ लिखा ....इसमें से एक प्रोपर्टी एक्सपर्ट में प्रकाशित भी हुआ ...नेक्स्ट पोस्ट में आपके पढने के लिए यहाँ भी उपलब्ध ....
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
Sundar prastuti..
एक बरस बीता कर दीवाली आई है,इसी शुभ अवसर पर आप सभी को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.
ईश्वर करे हर ओर रोशनी केवल इस एक दिन नहीं ,हर दिन रोशनी हर घर आँगन में ऐसे ही जगमगाती रहे.
बहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सारगर्भित सन्देश
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
आज की आवाज
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