सुनसान है जीवन की धारा
कौन लगाएगा किनारा
साँसों का उधार थी जिन्दगी
कब हमारी अपनी थी जिन्दगी
साँसों ने अवकाश लिया
उस पार जब किसी ने पुकारा
आमानत गिरवी थी पास मेरे
उसने वापस छुडा लिया
साँसों के दम पर मैंने
घरोंदा बनाया मिटटी का
घरोंदे से प्यार कर बैठे
साँसों को बिसरा दिया
खुशबूओं से सजा कर
मग्न रहती थी जिन्दगी
हर पल उम्मीद जगा कर
पल पल पग रखती जिन्दगी
हाथों की लकीरों में
किस्मत अधूरी मिली थी
दिल की धडकनों में
साँसें अधूरी मिली थी
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....
9 comments:
हाथों की लकीरों में
किस्मत अधूरी मिली थी
दिल की धडकनों में
साँसें अधूरी मिली थी
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....
बहुत सुंदर कविता है । मनुष्य की पूर्णता की चाह बहुत पुरानी है, लेकिन पूर्णता के क्षितिज तक की यात्रा में वही सहारा व संबल बनता है । उसकी कृपा के बिना कब पूर्णता मिलती है ।
धन्यवाद
बहुत ही सुंदर कविता.
धन्यवाद
विजयदशमी की शुभकामनाएँ!
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....
बहुत की खूबसूरत रचना है...
बहुत ही सुंदर.
विजयदशमी की शुभकामनाएँ.
अद्भुत .......मन के कोनो को बींधती .....
अद्भुत, कहीं आस पास.... और कहीं मन के भीतर गहरे तक
depressing yet beautiful...
MANBHAWAN RACHANA .....ADBHOOT...
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