Friday, September 18, 2009











जब तुमने छुआ था
होठों पे वो अहसास बाकी है

आंखों में तुम्हारी मुहब्बत का
नशा अभी बाकी है
ये सफर तनहा तय होता नहीं
रास्ता अभी बाकी है
ख्वाब में देखी थी जो
वो मुलाक़ात अभी बाकी है
जिस चांदनी में नहाये थे कभी
वो खुशबू अभी बाकी है
तुम्हारे आने से बिखरे थे जो
फिजाओं में वो रंग बाकी है
दिल पर तुम्हारी नज़रों का
जादू अभी बाकी है

14 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता का जादू अभी बाकी है,
बहुत ही सुंदर कविता कही आप ने,

M VERMA said...

बेहतरीन एहसास की कविता

वाणी गीत said...

भावपूर्ण कविता ..!!

के सी said...

बहुत खूबसूरत
लगता है अब स्वास्थ्य के साथ भीतर की कविता भी उर्जावान हो गयी है.

डॉ .अनुराग said...

अच्छी लगी ....भली सी .कविता .....
...
"उस मोड़ से अजनबी सी लगी थी जिंदगी
इस मोड़ पे भी कोई पहचान का नही मिलता"

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर कविता है...

Harish Joshi said...

bahu......................ut

hi zya....a.a.a.aa.a..da

khubsoo......orat

Kajal Kumar said...

श्रृंगार रस केवल स्वपनदृष्टा मन से ही उत्पन्न हो सकता है.

Mithilesh dubey said...

बहुत ही लाजवाब रचना, बहुत-बहुत बधाई। नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें.......

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अरे जादू......तो क्या मैं जादू पढ़ रहा था....नहीं..नहीं देख रहा था.....अरे नहीं..नहीं....पढ़ रहा था....अरे नहीं भाई...देख रहा था....अरे...बस...बस...बस....ओह आप ही बताईये ना....कि मैं क्या कर रहा था.....इस तरह मेरी बेचारगी का मज़ा लिए जा रही हैं.....!!!!!

daanish said...

puraani yaadoN ka zakheera smete hue
ek jani-pehchaani apni-si kavitaa
dil ki baateiN...dil se...dil tk...
waah !!

Vikas Kumar said...

renu ji bas itana kahna chahunga ki " hamare ahsason ko apne shabd de diye hain

Anonymous said...

आपकी कविता पढ़ी, पसंद आई, एक सलाह देना चाहता हूँ, लिखिए वो जो इस युग में नजर आता हो. प्यार कहीं दिखाई तो नहीं देता. फिर जब सारे रिश्ते पैसे से तोले जा रहे हों, आतंकवाद, अलगाववाद, जातिवाद, भाषा, धर्म, सम्प्रदाय सर चढ़कर बोल रहे हों, आप ऐसे समय में इस कविता का औचित्य स्वयं सोचें. पीने को शुद्ध जल, सांस के लिए आक्सीजन तक उपलब्ध नहीं है, माएं जन्म देकर नवजात को त्याग रही हैं, पति-पत्नी के रिश्ते भी दहेज़ की बुनियाद पर खड़े हों, ऐसे में ऐसी रचना!!!
आपको बुरा जरूर लगा होगा. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और ज्ञान बघारने लगा. वह भी तब जब आप मेरे ब्लॉग पर प्रशंसा कर आये. बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ, ऐसी सूरत में इस कमेन्ट को डिलीट कर दीजियेगा. शुक्रिया मुझे पढ़ने और कमेन्ट देने के लिए.

मनोज भारती said...

एक सुंदर भावपूर्ण कविता
प्रेम ही सब समस्याओं का हल है
प्रेमपूर्ण ह्रदय में ही समाधान के फूल खिलते हैं
प्रेम के गीत गाना और अपने भावों को अभिव्यक्ति देना संवेदनशील ह्रदय ही कर सकता है ...और आज के युग में सबसे ज्यादा जरूरत है संवेदनशील ह्रदय की .