शब्द भीग गए हैं
भीग कर कुम्हला जायेंगे
फ़िर मुडे तुडे नोट की भांति
बाज़ार में चल नहीं पाएंगे
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
रोम रोम में बस जाता है
व्याकुल आकुल मन को
रहत सामग्री दे जाता है
इन भीगे शब्दों से
सडांध सी आती है
फ़िर इन्हे कोई
सुन भी नहीं पायेगा
नाक कान रुमाल से ढांप कर
आगे बढ़ जाएगा
ये शब्द
कीचड में खिलने वाले
कमल नही
जो देवता पर चढ़ जायें
या स्वागत द्वार पर
तोरण बन सज जायें
भस्म कर दो इन शब्दों को
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....
भीग कर कुम्हला जायेंगे
फ़िर मुडे तुडे नोट की भांति
बाज़ार में चल नहीं पाएंगे
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
रोम रोम में बस जाता है
व्याकुल आकुल मन को
रहत सामग्री दे जाता है
इन भीगे शब्दों से
सडांध सी आती है
फ़िर इन्हे कोई
सुन भी नहीं पायेगा
नाक कान रुमाल से ढांप कर
आगे बढ़ जाएगा
ये शब्द
कीचड में खिलने वाले
कमल नही
जो देवता पर चढ़ जायें
या स्वागत द्वार पर
तोरण बन सज जायें
भस्म कर दो इन शब्दों को
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....
27 comments:
अत्यन्त प्रभावशाली शब्दों के प्रयोग से कविता साँस ले रही है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...sundar!
khoobsurati se shabdo ka estemaal.....
बहुत ख़ूबसूरत रचना...
bahut hi sundar rachana ......atisundar
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकार कीजिये...
नीरज
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनक
बहुत सुन्दर एक नयी अभिव्यक्ति के साथ ।शुभकामनाये<
Maun sabse sashakt bhaasha hai.
Think Scientific Act Scientific
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
अद्भुत ..जीवन का सार.है..सच कहा ..कभी कभी मौन भी हमसे ऐसा कुछ कह जाता है जो कई चीखे नहीं कह पाती
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....
बहुत सुंदर.
खूबसूरत.......
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
रोम रोम में बस जाता है
व्याकुल आकुल मन को
रहत सामग्री दे जाता है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...
बहुत सुन्दर भाव बन पडे है. बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकार कीजिये...
bahut khoob explain kiya hai ek 'shabd' ko apne... 'shabdon' ko ek paribhasha dekar ek nai prerna di hai...'NISHABD' ho gaye hum "Maun" hain
Weldone
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ..
मौन को शब्दों में बांधती एक सुन्दर रचना ,बहुत खूब पुखराज जी !
भस्म कर दो इन शब्दों को
मौन की भाषा सच्ची है
सच कहा आपने,सुन्दर रचना
मेरी कविता पर टिप्पणी के किये धन्यवाद "पर अतीत के बिना वर्तमान का अस्तित्व कहाँ ...."बिल्कुल सही कहा आपने.
मॆने अपनी कविता मे अतीत को नकारा नही हॆ ,"फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें" के सम्बन्ध में इतना ही कहना चाहूगा कि गुजरे कल से आज हॆ ऒर आज से जुडा हॆ आने
वाला कल,जीवन मरण प्रश्न को भुला कर बीते पल के साथ आज, व आने वाले कल को इस चिंता से मुक्त होकर जियें.
बेहतरीन रचना
शब्दों के भीगने का मुड़े-तुड़े नोटों से साम्य...आह! अद्भुत!
चकित कर गयी आपकी ये अनूठी कल्पना, मैम!
पूरी रचना एक ग़ज़ब के प्रवाह-लय में लिपटी हुई कुछ मेरी ही बातें मुझसे कहती हुई...कई बार अच्छी रचनाओं को पढ़ कर जो अहसास होता है कि काश ये मैंने लिखी होती...कुछ-कुछ वैसा ही अहसास!
अगर शब्द सड़ गये हैं..तब तो खैर मौन ही अच्छा है....! तब तक जब तक ये सड़े शब्द खाद बन कर नया अंकुरण ना कर दें..!
उत्तम भाव
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...
बहुत सुंदर कविता है
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....
लगा किसी मठ पर आ गया हूँ... बेहतरीन
रेनू, आपकी यह कविता शब्द से निशब्द होने की
अद्भुत कविता है.....शब्दों का भीगना, भीग के गल
सड़ जाना, मुडे तुडे नोटों की भांति बाज़ार
में ना चल पाना....आज के युग में शब्दों
के व्यवसायक होने की स्थिति को दर्शाता है
.....साथ ही आपने ऐसे शब्दों से मौन को
कविता में महत्व दे कर एक नया और अछूता
मेटाफर सृज दिया है....निश्चय ही आपकी यह
कविता बहुत बड़े अर्थों वाली कविता है....
ऐसी कविता लिखने के लिए आपको
मुबारकबाद.......डॉ. अमरजीत कौंके
bahut khubsurt abhivykti .
jab maoun mukhar hota hai to shabd chuk jate hai .
abhar
अद्भुत कविता है.......मौन का अपूर्व बहुफलकीय विश्लेषण ...आप समझती हैं...कविता....कविता बनती कैसे है...
beshak bahut khubsurat.
रचना पसंद करने और मेरा हौसला बढाने के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार ....आगे भी अच्छी रचनाये लिखने का मेरा प्रयास जारी रहेगा ...जब तक कलम लिख सके ....
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
-वाह!! अति सुन्दर!
छुट्टियों की वजह से समय पर नहीं पढ़ी, क्षमाप्रार्थी!! :)
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