Thursday, August 20, 2009

मौन


शब्द भीग गए हैं
भीग कर कुम्हला जायेंगे
फ़िर मुडे तुडे नोट की भांति
बाज़ार में चल नहीं पाएंगे
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
रोम रोम में बस जाता है
व्याकुल आकुल मन को
रहत सामग्री दे जाता है
इन भीगे शब्दों से
सडांध सी आती है
फ़िर इन्हे कोई
सुन भी नहीं पायेगा
नाक कान रुमाल से ढांप कर
आगे बढ़ जाएगा
ये शब्द
कीचड में खिलने वाले
कमल नही
जो देवता पर चढ़ जायें
या स्वागत द्वार पर
तोरण बन सज जायें
भस्म कर दो इन शब्दों को
मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....

27 comments:

Vinay said...

अत्यन्त प्रभावशाली शब्दों के प्रयोग से कविता साँस ले रही है

पारुल "पुखराज" said...

हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...sundar!

डिम्पल मल्होत्रा said...

khoobsurati se shabdo ka estemaal.....

समय चक्र said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना...

ओम आर्य said...

bahut hi sundar rachana ......atisundar

नीरज गोस्वामी said...

गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में

बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकार कीजिये...
नीरज

निर्मला कपिला said...

हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनक
बहुत सुन्दर एक नयी अभिव्यक्ति के साथ ।शुभकामनाये<

अशरफुल निशा said...

Maun sabse sashakt bhaasha hai.
Think Scientific Act Scientific

डॉ .अनुराग said...

गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में


अद्भुत ..जीवन का सार.है..सच कहा ..कभी कभी मौन भी हमसे ऐसा कुछ कह जाता है जो कई चीखे नहीं कह पाती

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....
बहुत सुंदर.

gazalkbahane said...

खूबसूरत.......
गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में
कहता है कुछ कानों में
रोम रोम में बस जाता है
व्याकुल आकुल मन को
रहत सामग्री दे जाता है

Meenu Khare said...

हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...

बहुत सुन्दर भाव बन पडे है. बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकार कीजिये...

Anonymous said...

bahut khoob explain kiya hai ek 'shabd' ko apne... 'shabdon' ko ek paribhasha dekar ek nai prerna di hai...'NISHABD' ho gaye hum "Maun" hain

Weldone

ललितमोहन त्रिवेदी said...

मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ..
मौन को शब्दों में बांधती एक सुन्दर रचना ,बहुत खूब पुखराज जी !

vikram7 said...

भस्म कर दो इन शब्दों को
मौन की भाषा सच्ची है
सच कहा आपने,सुन्दर रचना

vikram7 said...

मेरी कविता पर टिप्पणी के किये धन्यवाद "पर अतीत के बिना वर्तमान का अस्तित्व कहाँ ...."बिल्कुल सही कहा आपने.
मॆने अपनी कविता मे अतीत को नकारा नही हॆ ,"फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें" के सम्बन्ध में इतना ही कहना चाहूगा कि गुजरे कल से आज हॆ ऒर आज से जुडा हॆ आने
वाला कल,जीवन मरण प्रश्न को भुला कर बीते पल के साथ आज, व आने वाले कल को इस चिंता से मुक्त होकर जियें.

Anonymous said...

बेहतरीन रचना

गौतम राजऋषि said...

शब्दों के भीगने का मुड़े-तुड़े नोटों से साम्य...आह! अद्‍भुत!

चकित कर गयी आपकी ये अनूठी कल्पना, मैम!

पूरी रचना एक ग़ज़ब के प्रवाह-लय में लिपटी हुई कुछ मेरी ही बातें मुझसे कहती हुई...कई बार अच्छी रचनाओं को पढ़ कर जो अहसास होता है कि काश ये मैंने लिखी होती...कुछ-कुछ वैसा ही अहसास!

कंचन सिंह चौहान said...

अगर शब्द सड़ गये हैं..तब तो खैर मौन ही अच्छा है....! तब तक जब तक ये सड़े शब्द खाद बन कर नया अंकुरण ना कर दें..!

उत्तम भाव

Vipin Behari Goyal said...

सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ...

बहुत सुंदर कविता है

सागर said...

मौन की भाषा सच्ची है
हवन हो जायेंगे शब्द
समिधा में मिलकर
सुवासित होगा मौन
शून्य में धुंआ बनकर ....

लगा किसी मठ पर आ गया हूँ... बेहतरीन

Dr. Amarjeet Kaunke said...

रेनू, आपकी यह कविता शब्द से निशब्द होने की
अद्भुत कविता है.....शब्दों का भीगना, भीग के गल
सड़ जाना, मुडे तुडे नोटों की भांति बाज़ार
में ना चल पाना....आज के युग में शब्दों
के व्यवसायक होने की स्थिति को दर्शाता है
.....साथ ही आपने ऐसे शब्दों से मौन को
कविता में महत्व दे कर एक नया और अछूता
मेटाफर सृज दिया है....निश्चय ही आपकी यह
कविता बहुत बड़े अर्थों वाली कविता है....
ऐसी कविता लिखने के लिए आपको
मुबारकबाद.......डॉ. अमरजीत कौंके

शोभना चौरे said...

bahut khubsurt abhivykti .

jab maoun mukhar hota hai to shabd chuk jate hai .
abhar

RAJESHWAR VASHISTHA said...

अद्भुत कविता है.......मौन का अपूर्व बहुफलकीय विश्लेषण ...आप समझती हैं...कविता....कविता बनती कैसे है...

रवीन्द्र दास said...

beshak bahut khubsurat.

Renu goel said...

रचना पसंद करने और मेरा हौसला बढाने के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार ....आगे भी अच्छी रचनाये लिखने का मेरा प्रयास जारी रहेगा ...जब तक कलम लिख सके ....

Udan Tashtari said...

गले सडे शब्दों से तो
मौन ही अच्छा है
गूंजता है वीरानियों में

-वाह!! अति सुन्दर!

छुट्टियों की वजह से समय पर नहीं पढ़ी, क्षमाप्रार्थी!! :)