
Sunday, June 21, 2009
ये रिश्तों की प्यास ...

Saturday, June 6, 2009
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ....

अपने सारे अरमान ,
नवयुग का जो करे निर्माण ,
लेकर अपने सीने में ,
छुपा हुआ था
धरती के अंधकारमय गर्भगृह के भीतर ।
पाकर सावन का गीला सा स्पर्श ,
म्रदुल और स्वप्निल हवाओं का ,
थाम कर दामन ,
प्रतिक्षण नवीन ऊँचाइयों तक
जाने को बेचैन था मन ।
मगर हवा यहाँ की बदली है ,
खेतों की जगह इमारत ने ली है ,
अब भी सावन बरसा करता है ,
अब भी सूरज ने अपना पथ नही बदला है ,
पर वो बीज ....
वो बीज ,
इन सब के बीच ,
अपने अरमानों की
जड़ें ढूँढा करता है ....
Wednesday, May 27, 2009
शिकायत नही ज़माने से ...

आज दिल ने फ़िर तमन्ना की ...कोई ग़ज़ल लिखी जाए ....शब्द ...! शब्द ...ह्म्म्म कहाँ से शुरू की जाए ....सागर , समंदर , आसमान , किताबें ,पेड़ , हवाएं , ....कहाँ से शुरू करूँ .....ये आसमान ये बादल... ये रास्ते... ये हवा ...
हरेक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने पे ...कई दिनों से शिकायत नही ज़माने से ....
ऊँची लहरों में मुझे कश्ती तैरना आ गया ,
साहिल से वादा निभाना आ गया ....
जिन्दगी अश्कों से आशना न थी ,
हमको भी गम छुपाना आ गया .....
बिछड़ने की बातें मत करो यारों ,
कह दो यादों का मौसम सुहाना आ गया ...
बाद मुद्दत के मिली है तन्हाई ,
ख़ुद से बातें करने का ज़माना आ गया ...
चाहतों की बातें हैं ये तो ,
वरना उसे क्यों काम पुराना याद आ गया ....
Friday, May 15, 2009
संता क्लॉस
पैसा तो ऐसा की घरोंदों की दीवारों में गिन्नियां जडी थीं ....फ़िर मुश्किल क्या ....निकल चल संता क्लॉज़ ....
गमो से जो भरा पड़ा हो दिल तो वह मांस का लोथडा बस धड़कता है , न हँसता है न रोता है ....ये दिल कम्बखत अपने दुखों से खाली हो तो खुशियों के लिए जगह बने ...पल दो पल की मेहमान खुशी के लिए दिल अपने कमरे का एक कोना खाली कर देता है .............बस ....
उसके लिए तो इतना ही काफ़ी था ...कोई दरवाज़ा, कोई झरोखा तो खुले फ़िर धीरे धीरे खुशी अपना साम्राज्य स्थापित कर लेगी ...
बस यही था संता क्लॉज़ बन्ने का फंडा....
इसी फंडे को लेकर घूमता रहा , घूमता रहा , घूमता रहा ...जो मिलता उसी के गम को अपने हार्ट बैंक में जमा कर लेता ....करता रहा ....और उनकी खिड़कियों को खोल आया था खुशियों के लिए
धीरे धीरे उसका हार्ट बैंक भरने लगा फ़िर भी वो उसे भरने में लगा रहा ....मैंने कहा लालच बुरी बला है ...नही माना ....
मत मानो ..मेरा क्या है ....न आशियाँ मेरा था न मेहमान मेरे ....
पर अब क्या ...अब हार्ट बैंक का खजाना मल्टी नॅशनल बैंक में जमा करना था ....इशु ..ईश ...रब्बा ... गौड, मल्टी नेशनल बैंक ...मल्टी नामो से उपलब्ध ....
तो ....चलें संता क्लॉज़ ......
हाँ ....अब बारी आ ही गई .....चलो .....
Saturday, May 9, 2009
माँ की पाती बेटी के नाम....
दुर्गम मार्गों के बीच बनाती हैं अपनी राह,
चत्त्तन ह्रदयों के गर्व को अपने वेग से चूर करने वाली,
कौन रोक सका है गंगा, यमुना और सरस्वती को,
कितने ही बाँध बना लो अपनी सोचों के
कितने ही पत्थर लुढ़का लो संस्कारों की दुहाई के,
अपने उद्गम स्थल से निकली हैं गर ये गोमती,
लक्ष्य कर चुकी है तय प्रतिज्ञा की है अपने आप से,
फ़िर खोने का प्रश्न उठता ही नही,
लड़ती समाज के ठेकेदारों से, अपने ही किनारों से,
मंजिल पर जाकर ही दम लेंगी ये
अविरल, अनवरत, प्रवाहमय गंगा, ये हमारी बेटियाँ ....
कुछ पंक्तियाँ बेटियों के बारे में मुझे प्राप्त हुयीं
....ओस की बूँद सी होती है बेटियाँ,
स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती हैं बेटियाँ,
रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को
दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियाँ
हीरा अगर है बेटा तो सच्चा मोटी है बेटियाँ,
काटों की राह पे ख़ुद ही चलती रहेंगी,
औरों के लिए फूल बोथी हैं बेटियाँ,
विधि का विधान है ,यही दुनिया की रसम है,
मुट्ठी भर नीर सी होती हैं बेटियाँ,
घर के आँगन की तुलसी होती हैं बेटियाँ,
हर गम को खुशी में बदल देती हैं बेटियाँ
पोधों की शाख पर जब हरियाली न हो,
उन पोधों में रंग भर देती हैं बेटियाँ,
एक अनोखा रिवाज है जग में मेरे दोस्त,
माँ की ममता समेटी हैं बेटियाँ ....
Tuesday, May 5, 2009
चुनाव का मौसम
जब कुरुषेत्र में चुनावी महासमर का आयोजन किया गया तो पांडव और कौरव दोनों के पक्ष में बराबर वोट डले ....टाई हो हो गया था ...मामला फंस गया ...पार्टी दो ही थी ...तीसरी पार्टी होती तो गठबंधन सरकार बन जाती ....भीषण संकट उत्पन हो गया ....सोचा गया तो पता चला की कृष्ण जी ने अपना वोट डाला ही नही था ....महत्वपूर्ण वोट था ...डालना तो चाहिए ही....स्पेशल अर्रेंज्मेंट किए गए ....दोनों पार्टी के नेता ....(को पा-कौरव पार्टी )दुर्योधन और (पापा-पांडव पार्टी) अर्जुन, कृष्ण के पास गए ....हालाँकि अर्जुन पार्टी लीडर नही थे ...पर कृष्ण जी के मुहलगे चमचे थे ....सो युधिष्ठर के स्थान पर उन्हें भेजा गया ....
कृष्ण जी सो रहे थे ...दोनों जाकर पलंग पर बैठ गए ...बंसीधर की आँख खुली ....राजनीती कुशल तो थे ही ...लेटे-लेटे सारी बात समझ गए ....फ़िर राजमाता कुंती उनसे पहेले ही मिल चुकी थीं ....
कुंती क्रष्ण की बुआ थीं ...और इसके अलावा उनके उच्च पद से भली भांति परिचित थीं ...भाई भतीजा वाद काम आया ...कुंती ने उनके पास जाकर उन्हें संबोधित किया ..."हे प्रभु ! हम आपकी कृपा पर पूरी तरह से आश्रित हैं ...हमे सत्ता का शासन दिलाने वाला कोई दूसरा नही है ...उनका अभिप्राय कृष्ण के हस्तिनापुर में रह कर पांडवों के पक्ष में वोट डालने से था ...
तम्स्ये पुरुषं त्वध्मिश्वरम प्रक्रते परम ,
अलाक्ष्यम सर्वभूतानामअन्त्बहिर्व्स्थितम ।
श्रीमती कुंती ने कहा - में आपको नमस्कार करती हूँ ...क्यूंकि आप आदि पुरूष हैं और इस भौतिक जगत के गुणों से निसंग रहते हैं ....आप समस्त वस्तुओं के भीतर तथा बाहर स्थित रहते हुए भी सबों द्वारा अलक्ष्य हैं ....
कुंती ऐसी प्रबुद्ध महिला थीं की अच्छी तरह जानती थीं की उनका भतीजा सत्ता पलटने की ताकत रखता है इसलिए उन्हें सर्व शक्तिमान , आदि पुरूष के रूप में संबोधित किया ...
समोहयम सर्वभूतेषु न में दवेस्ह्योयस्ती न प्रियः ,
ये भजन्ति तू मम भक्त्या मयी ते तेषु चाप्य्हम ।
में न तो किसी से द्वेष करता हूँ , न ही किसी के साथ पक्षपात करता हूँ ...में सबों के लिए सम्भव हूँ ....किंतु जो भक्ति पूर्वक मेरी सेवा करता है वह मेरा मित्र है ....यह कहकर कृष्ण ने अपना वोट पांडवों के पक्ष में दिया ....सत्ता के चुनावी महासमर में पांडवों को जीत दिलाकर शासन दिलाया और युधिष्ठिर को सत्तारूढ़ कराया ...
अब देखा - एक वोट भी कितनी महत्वपूर्ण है ...
अतः -सही निर्णय , सही चुनाव , सही नेता ....कुछ समझे .....