Wednesday, June 2, 2010


धुआं धुआं हो गयी नज़र
तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है ,

एक ज़लज़ला उठा है फिर
मलबे तले जीवन हारा है ,

अंतहीन तलाश है जाऊं कहाँ
लोग कहते हैं नाकारा है ,

तेरी यादों को भूलने के दर्द ने
लकीरों में तेरा नाम उभारा है ,

सांसों को धड़कन की फ़िक्र है
तभी तो तुम्हारा नाम पुकारा है ,

फलसफा तेरी मोहबत्त का
आईने पर पत्थर मारा है ,

सांसें थामने की कोशिश भर
सुबह पे अँधेरा फिसला है ,

औंधे मुंह सुबह लौटी है
आरिज़ पर सन्नाटा बिखरा है ,

ज़ख्म सूख ही जायेंगे
वक़्त रेत पर फिसला है

23 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

धुआं धुआं हो गयी नज़र
तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है ,
एक ज़लज़ला उठा है फिर
मलबे तले जीवन हारा है , ...

पूरी नज़्म बहुत बढ़िया है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत नज़्म...

kunwarji's said...

बहुत देर से पढ़ रहा हूँ,कै बार पढ़ चुका हूँ,हर बार यही ख्याल आया है मन में...

सुन्दर अभिव्यक्ति....

कुंवर जी,

दिलीप said...

waah lajawaab bahut sundar bahut khoob bahut badhiya...

दिगम्बर नासवा said...

सांसों को धड़कन की फ़िक्र है
तभी तो तुम्हारा नाम पुकारा है ...

लाजवाब नज़्म है ... उनके नाम से ही तो दिल धड़कता है .. बहुत खूब ...

Harish Joshi said...

अंतहीन तलाश है जाऊं कहाँ
लोग कहते हैं नाकारा है ,
तेरी यादों को भूलने के दर्द ने
लकीरों में तेरा नाम उभारा है ,

लकीरों को पढने की कोशिश ने
एक बार फिर हमारा दर्द उभारा है,
सोचा की कुछ नहीं पास मेरे
देखा तो सारा जहाँ हमारा है...

Vinay said...

ग़ज़ब है, कमाल है, वबाल है

रश्मि प्रभा... said...

waah

Ra said...

आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आना हुआ , बहुत गहराई और सुन्दरता से भरा लेखन मिला ,,बधाई

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर गजल आप से एक निवेदन है ... आप इस विजेट को बन्द कर दे जिस पर जगजीत सिंह के गीत चलते है, हम रात के समय भी ब्लांग पर जाते है तो उस समय बच्चे सोये होते है, ओर फ़िर इतनी तेज आवाज से वो जाग जाते है, इसे बन्द करते करते भी, अगर इसे लगाना ही है तो आवाज बन्द रखे जिस ने सुनाना है वो खुद चला लेगा

Sadhana Vaid said...

बेहतरीन नज़्म ! बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ! बधाई !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जिंदगी के अनुभवों को बहुत सलीके से बयाँ किया है आपने। बधाई।
--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर. सीधे हाथ लगा डांस करता विजेट भी बहुत अच्छा लगा.

संजय भास्‍कर said...

नज़्म बहुत बढ़िया है!

Anonymous said...

पुखराज अब अपने नए रूप में ..
मेरी पसंद वाला विजेट भी हटा दिया गया है ....
राज भाटिया जी अब आपकी शिकायत दूर हो गयी होगी ...

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

संदीप said...

ज़ख्म सूख ही जायेंगे
वक़्त रेत पर फिसला है

बहुत खूबसूरत नज़्म...बधाई।

Randhir Singh Suman said...

nice

रंजना said...

धुआं धुआं हो गयी नज़र
तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है !!!

वाह...बेहद खूबसूरत रचना....

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

ज़ख्म सूख ही जायेंगे
वक़्त रेत पर फिसला है वैसे तो पूरी नज्म ही खूबसूरत है लेकिन इन पंक्तियों का जवाब नहीं।

mridula pradhan said...

very good.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Koi Art movie jaisi aapki rachna, jitni samajh aayee achhi lagi....

ZEAL said...

बेहतरीन नज़्म !