यूँ तो त्यौहार किसी विशेष उम्र से जुड़ा नहीं है .... पर बच्चों में इसके प्रति कितना लगाव है ये तो संता क्लाज़ की बढती लोकप्रियता से पता चलता है ... वैसे तो सारा जादू तो बाज़ार का चलाया हुआ है पर उसकी एक अच्छी बात यह है कि कोई भी फेस्टिवल किसी विशेष धर्म का न होकर सभी का हो गया है .... बच्चे छोटे थे तो क्रिसमस स्पेशल सॉक्स दीवार पर लटकाया करते थे जिसका मतलब था संता क्लाज़ से प्रार्थना , गिफ्ट के लिए ...और सुबह को मिला करते थे गिफ्ट , उनके तकिये के नीचे ....बस बच्चों की ख़ुशी में हमारी ख़ुशी ....
कितना मासूम होता है बचपन .... औ...और कितना शैतान भी....मगर जितना शैतान उतना दिल के करीब ....
कितना मासूम होता है बचपन .... औ...और कितना शैतान भी....मगर जितना शैतान उतना दिल के करीब ....
वो बचपन नादान आवारा था ,
मगर फिर भी कितना प्यारा था....
धूप बातें करती थी
कमीज की बाँहें मोड़ कर ,
परछाईयां लम्बी होती जाती थी
शामों का हाथ पकड़कर ,
शैतान गलियों संग
फिरता मारा मारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था .....
मीठी सुबहें चखते थे तो ,
दोपहर नमकीन हो जाती थी ,
माँ की आवाज में छोटी बहन तुतलाती थी ,
मार खा कर भी
पिता की आंखों का तारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था ....
छूकर हमको छुप जाती थी ,
ऐसी खिलनदड हवाएं थी ,
आंखों पर पट्टी बाँध कर
ढूंढती हमें दिशाएँ थी ,
शहंशाह थे हम अपने दिल के
ताज हमारा , तख़्त हमारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था...
होली दिवाली ईद क्रिसमस
सब पर गले मिलते थे ,
गोल गोल फिरकी बनकर
आँगन में नाचा करते थे ,
जेठ, शिशिर, माघ औ फागुन
हर मौसम हमको प्यारा था ,
वो बचपन नादान आवारा था.....
8 comments:
हैप्पी क्रिसमस ....
रचना प्यारी लगी.
शहंशाह थे हम अपने दिल के
ताज हमारा , तख़्त हमारा था ,
बचपन के क्या कहने -- सब कुछ कितना करीब और अज़ीज लगता है
"हैप्पी क्रिसमस ...."
बहुत बढिया रचना है !!
हैप्पी क्रिसमस !!
Merry Christmas
हमारा तो यूं भी सुबह से काम करने का मूड नहीं है ....
हैप्पी क्रिसमस ....
बचपन के बहाने आपने इतनी प्यारी कविता सुना दी। ये पंक्तियां
"धूप बातें करती थी
कमीज की बाँहें मोड़ कर ,
परछाईयां लम्बी होती जाती थी
शामों का हाथ पकड़कर"
बड़े प्यारे लगे ये बिम्ब!
आपकी रचना ने तो हमे भी हमारा बचपन याद दिला दिया। बहुत सुन्दर रचना है क्रिसमस और नये साल की बधाई
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