Tuesday, October 20, 2009


आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं ...पूरे साल ये दीप यूँ ही जगमगायें ... आप सब राम और रावणकी इस घुमक्कडी का मज़ा लें ...फ़िर आयेंगे ब्लॉग पर एक नई पोस्ट के साथ... रावण- प्रभु , आज आपने यह अति उत्तम किया जो मुझे भी अपने साथ प्रथ्वी भ्रमण पर ले आए ... आज तो वसुंधरा अत्यधिक जगमगा रही है ....प्रतीत होता है की किसी उत्सव का आयोजन किया जा रहा है ... भ्रमण पर निकले तो देख भी लिया , वरना मै तो प्रत्येक दिवस की भांति स्वर्ग अप्सराओं के नृत्य गान और मदिरा पान में ही रत रहता
राम - तभी तो कहता हूँ रावण , थोड़ा भ्रमण भी किया करो ...सिंहासन पर बैठे बेठे , देखा नही तुम्हारा उदर ... वैसे भी तुम दस मुंह से भोजन करते हो , दशानन
रावण - ये क्या प्रभु ! नारद, ब्रम्हा यहाँ तक की स्वयं प्रभु महादेव भी अब तक मेरे उदर को देखकर व्यंग्य करते थे अब आपने भी मेरे साथ हास्य प्रारम्भ कर दिया ...अब मै कदापि आपके साथ भ्रमण को नही जाऊँगा
राम - नही नही , प्रिय रावण .... मै तो बस यूँ ही ...थोड़ा विनोद कर रहा था ...हाँ , तो तुमने प्रश्न किया था की प्रथविवासी किस उत्सव का आयोजन कर रहे हैं ....तो हे लंका पति , ये सब मेरे हेतु ही प्रायोजित है ...मेरे राज्याभिषेक की जयंती मनाकर ये लोग अपने कार्यालयों , एवं निवासों को दीपो से , आई मीन , चाइनीज झालरों से सजाते हैं ....
रावन - क्या ! आपके राज्य भिषेक की जयंती ....मेरे राज्याभिषेक पर तो कभी प्रजा ने ऐसा उत्सव नही मनाया ...
राम - क्या तुम्हे मेरे प्रति इर्ष्या की भावना उत्पन्न हो रही है
रावण - नहीं , इर्ष्या तो कदापि नही , परन्तु ....
राम - परन्तु क्या लंकेश ! मैंने तो तुम्हे सीता अपहरण के पहले ही आगाह किया था , पर , तुम तो फ़िर तुम हो .....
रावण - यह तो सत्य है प्रभु , परन्तु कल ही मैंने समाचार पत्र में एक स्त्री के अपहरण और बलात्कार का समाचार पढ़ा था और कल क्या ! ऐसी घटनाओं का विवरण में आए दिन प्रथ्वी लोक के समाचार पत्र में पढता ही रहता हूँ ...प्रथ्वी पर तो मनुष्य दैनिक न जाने कितने अपहरण करता है फ़िर उन्हें म्रत्यु दंड भी देता है ...मैंने तो मात्र एक अपहरण ही किया था , जानकी का , और उनकी इच्छा विरूद्व उनका स्पर्श भी नही किया था ....तदापि मैंने यह कुकृत्य आपसे , अपनी बहन सूर्पनखा का प्रतिशोध लेने के लिए किया था
राम - ( हँसते हुए ) जैसा भाई वैसी बहन ...एक करेला तो दूजा नीम चढा ...
रावण - क्या कुछ कहा आपने ?
राम - नहीं नहीं , कुछ भी तो नहीं , तुम आगे कहो ..क्या कह रहे थे ...?
रावण - जाने दीजिये , यह बताइए , की यहाँ , इस बड़ी सी इमारत में प्रकाश की चकाचौध और इसके सामने , वहाँ , कुटी जैसे दिखने वाले घर में अन्धकार ...ऐसा क्यूँ ? क्या आपके राज्य में भी ऐसा ही होता था ...? परन्तु मैंने स्वर्ग में तो ऐसा नही देखा ...
राम - यह मेरी नहीं , लक्ष्मी जी की माया है ...कहीं प्रकाश तो कहीं अन्धकार छाया है ...
रावण - तो अब ये प्रथ्वी वासी अब और क्या प्रायोजन करेंगे ...?
राम - करेंगे क्या.... तुम्हारा पुतला तो पहले ही दशहरे पर जला चुके हैं ....अब बस मेरे अयोध्या आगमन की खुशी में मिष्ठान वितरित करेंगे और रात्री को लक्ष्मी पूजन का आयोजन करेंगे
रावण - क्या प्रभु ...? मेरा पुतला जलाया ...मगर क्यूँ ...?
राम - क्यूंकि तुमने मर्यादायों का उलंघन किया , अतः तुम अधर्म के प्रतीक हुए अंततः तुम्हारी प्रतिमूर्ति बनाकर उस अधर्म का नाश करने हेतु उसे अग्नि में भस्म कर दिया
रावण - परन्तु मुझसे ज्यादा अधर्मी तो ये लोग हैं में तो महादेव जी के वरदान और अमृत कुंद प्राप्त करने से अभिमानी हो गया था
राम - उसी अभिमान का परिणाम तुम्हे भुगतना पड़ा
रावण - ( सोच में ) .....
राम - क्या सोच रहे हो ?
रावन - सोच रहा हूँ प्रभु , मेरे एक अभिमान का मुझे भयंकर परिणाम भुगतना पड़ा , फ़िर इन प्रथ्विवासियों के पास तो कोई वरदान या अमृत भी नहीं है , फ़िर इन्हे किस बात का अभिमान है ...?
राम - अभिमान है इन्हे अपनी बुद्धिमता का ...मनुष्य सोचता है कीइसका प्रयोग कर वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है और रात दिन इसी उधेड़बुन में लगा रहता है यही नहीं , अपितु इनमे लोभ और परस्पर इर्ष्या भी निवास करती है ये नहीं जानते , जो ये कर रहे हैं , इसके कितने भयंकर परिणाम म्रत्युप्रांत भुगतने होंगे और म्रत्युप्रांत ही क्यूँ , इस जीवन में , इस लोक में भी ....
रावण - प्रभु , आपके दरबार में न्याय ही न्याय है आपकी जय हो
राम - वो देखो लंकेश ! चलते चलते तुम्हारी लंका आ गई
रावण - कहाँ प्रभु ! आह ...मेरी लंका ...मेरी प्यारी लंका ....
राम - जानते हो , आज भी लंका निवासी तुम्हारी पूजा करते है , यहाँ तुम्हारी प्रतिमूर्ति जलाई नही जाती , वरन पूजा होती है
रावण - ऐसा क्यूँ प्रभु !
राम - क्यूंकि तुम उस समय ज्ञानी राजा एवं महादेव के परम भक्त थे
रावण - नामामिमिशान निर्वान्रूपम
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं
निजाम निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश्वासम भाजेयम
निराकार ओमकार मुलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतित्मीषम गिरीशं
करालं महाकालं कृपालं
गुनागार संसारपारं नातोहम
अहोभाग्य प्रभु , आज आपके साथ भ्रमण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ....बस चलते चलते एक समस्या का समाधान और कर दीजिये
राम - कैसी समस्या रावण ? कहो ....
रावण - यह जो पाठक हमारे वार्तालाप को पढ़ रहा है , उसके ह्रदय में एक पीड़ा रह रह कर उठ रही है
राम - कैसी पीड़ा दशानन ...?
रावण - यही की में पापी होने हे उपरांत भी स्वर्ग में कैसे ? आपने भी मुझे की एपवाली दीपावली की बस आप इस पाठक की समस्या का समाधान कर दीजिये
राम - हा..हा ...लें ... इस पाठक में अत्यधिक बुद्धि का समावेश है रावन ...इसे स्वयं ही सोचने दो ....मनुष्य के आगे सारे भेद खोलना उचित नहीं ...चलो हम प्रस्थान करें ...
रावण - चलिए प्रभु ....जैसा आप उचित समझें ....

10 comments:

मनोज भारती said...

सुंदर पोस्ट .... अच्छा पोस्टमार्टम किया है आपने आदमी को सोचने के लिए .

PN Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर आलेख. लगता है आपने ब्लोगवाणी या ऐसे ही किसी aggregator पर अपने ब्लॉग का पंजीयन नहीं कराया है. इतनी अच्छी पोस्ट हमसे कैसे चूक गयी यही हम सोच रहे थे.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ढंग से आप ने आज के हालात पर वार किया, ओर सच भी है उस रावण ने तो इतना बडा पाप भी नही किया... जो आज के रावण कर रहे है,
बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने धन्यवाद

अजय कुमार said...

aaj ke haalaat ka sahi chitran

गौतम राजऋषि said...

बहुत ही बढ़िया है ये, मैम। एकदम हटकर के वाला अंदाज...

दीवाली अच्छी मनी होगी। ब्लौग का नया रूप-रंग चमक रहा है।

Akhilesh Shukla said...

bahot hi accha priyash hai yai apka renu ji

daanish said...

sochtaa hooN
logoN ko zyada se zayad
is tarah ka lekhan padhne ko
milnaa chahiye
abhivaadan . . .

BAD FAITH said...

बहुत सुंदर ढंग से आप ने आज के हालात पर वार किया,बधाई

Anonymous said...

आपकी टिप्पणी बहुत खुबसूरत है !
बहुत बहुत धन्यवाद!आपकी
कविताये बडी सुगन्धमय हैं !
ईश्वर करें आप रूप रस गंध शब्द स्पर्श से रूबरू हों !

डा श्याम गुप्त said...

अवतार स्वर्ग में नहीं रहते, तथ्यात्मक त्रुटि की अपेक्षा स्वप्न वर्णन , आदि किया जाना अधिक सतीक व प्रभावशाली रहता। खैर, भाव अच्छे हैं।