Monday, September 28, 2009

उस पार

सुनसान है जीवन की धारा
कौन लगाएगा किनारा
साँसों का उधार थी जिन्दगी
कब हमारी अपनी थी जिन्दगी
साँसों ने अवकाश लिया
उस पार जब किसी ने पुकारा
आमानत गिरवी थी पास मेरे
उसने वापस छुडा लिया
साँसों के दम पर मैंने
घरोंदा बनाया मिटटी का
घरोंदे से प्यार कर बैठे
साँसों को बिसरा दिया
खुशबूओं से सजा कर
मग्न रहती थी जिन्दगी
हर पल उम्मीद जगा कर
पल पल पग रखती जिन्दगी
हाथों की लकीरों में
किस्मत अधूरी मिली थी
दिल की धडकनों में
साँसें अधूरी मिली थी
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....

9 comments:

मनोज भारती said...

हाथों की लकीरों में
किस्मत अधूरी मिली थी
दिल की धडकनों में
साँसें अधूरी मिली थी
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....

बहुत सुंदर कविता है । मनुष्य की पूर्णता की चाह बहुत पुरानी है, लेकिन पूर्णता के क्षितिज तक की यात्रा में वही सहारा व संबल बनता है । उसकी कृपा के बिना कब पूर्णता मिलती है ।

धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर कविता.
धन्यवाद

Vinay said...

विजयदशमी की शुभकामनाएँ!

Anonymous said...

तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....

बहुत की खूबसूरत रचना है...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत ही सुंदर.
विजयदशमी की शुभकामनाएँ.

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत .......मन के कोनो को बींधती .....

के सी said...

अद्भुत, कहीं आस पास.... और कहीं मन के भीतर गहरे तक

Anonymous said...

depressing yet beautiful...

ओम आर्य said...

MANBHAWAN RACHANA .....ADBHOOT...