वैसे तो भादों की पूर्णिमा के चाँद की सुन्दरता का ख़ास महत्त्व तो नहीं है फ़िर भी शायद पहली बार इस पूर्णिमा के चाँद को देखकर सुकून सा मिल रहा है ...सांवले आसमान में वो अकेला चाँद और उसके नीचे मैले से बादल की एक रेखा जो उसकी चांदनी से चमक रही है ...मानों किसी कविता की ख़ास पंक्तियों को अंडर लाइन कर दिया हो ....और इस गोल गोल चाँद से कुछ दूर पूरे आसमान में चमकता हुआ इकलौता तारा ....मेरी आंखों को क्यूँ खटक रहा है ...जलन हो रही है मुझे इससे ...ज्वार भाटा सा उठ रहा है ...वो उस चाँद के पास आने को बेताब नज़र आ रहा है ....जिस दिशा में चाँद में चाँद चलता जाता है वो सितारा भी उसके आकर्षण में बंधा साथ साथ चल रहा है ...कुछ कुछ उसे डर है चाँद को खोने का ...आकर्षण में तो मै भी बंध रही हूँ पर साथ साथ नहीं चल सकती हूँ ...और ये लो ...बादल की मैली सी पंक्तियाँ और उभर आयीं हैं और चाँद को अपनी कैद में ले रही हैं ...नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते ...क्या कुसूर है उस बेचारे का ...खोल दो ये हथकडियां ...और बंधन से मुक्त कर दो ...दिन भर की आग में तपे, जले , जाने कितने दिलों को ठंडक दे रहा होगा ...तुम्हे देखकर तो धरती की तृष्णा जाग्रत हो जाती है पर ये जो चाँद है न ...इसकी खुशबू दिलों को महका देती है ....तभी तो ये कितने ही कवियों की कल्पना का आधार बनता रहा है ....
तारों की भीड़ में
अमावास की पीर है जिन्दगी
मेरा चाँद आज फ़िर मुझसे रूठा है ...
ख्वाब सज़ा लेते पलकों पे
जिन्दगी रखती हाथों पे
अगर तुम मेरे साथ होते ...
22 comments:
aji waah kya baat hai,chand ka saath aur sunder si dil ki baat,shandar post.
बहुत अच्छा सोचा है... पर
चाँद को असमान की बाहों में रहने दो...
प्रक्रति के नियम मत तोड़ो
अरे आप की रचना पढ कर तो मेरे जेसा भी कविता लिखने की सोचने लगा, आप ने बहुत सुंदर मोहक बना दिया इस दर्शय को ,
धन्यवाद
ख्वाब सज़ा लेते पलकों पे
जिन्दगी रखती हाथों पे
अगर तुम मेरे साथ होते ...
Bahut khoob.
वाह बहुत खुब, सुन्दर अभिव्यक्ति।...
तारों की भीड़ में
अमावास की पीर है जिन्दगी
सुन्दर अभिव्यक्ति
अगर तुम मेरे साथ होते ...kitna sunder likhti hai aap...chand bhi kya cheez hai kabhi rootth jata hai.....
बहुत खूब...अच्छा आलेख!
bahut thode shabdon me gahri vedna ko sanjo dia apne....mubark
तारों की भीड़ में
अमावास की पीर है जिन्दगी
मेरा चाँद आज फ़िर मुझसे रूठा है ...
ख्वाब सज़ा लेते पलकों पे
जिन्दगी रखती हाथों पे
अगर तुम मेरे साथ होते ..
इस चाँद ने तो क्या कहे ......बिल्कुल सही लिखा है आपने ......मेरे दिल की बात जैसी
रोज रात आसमान में अकेला नजर आता है...जाने किससे वफ़ा निभाता आया है....मुआ चाँद ...
जो रूठा है वो मान भी जाएगा. वैसे भी रूठने और मनाने और फिर मान जाने का भी कुछ और मजा है. बेहतरीन रचना.
तारों की भीड़ में
अमावास की पीर है जिन्दगी
मेरा चाँद आज फ़िर मुझसे रूठा है ...
बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति------अमावस की पीर----मुझे नहीं लगता अभी तक किसी कवि द्वारा यह उपमा दी गयी है---हार्दिक बधाई
हेमन्त कुमार
बहुत खूब.....!
अगर तुम मेरे साथ होते ...
खूबसूरत
बहुत ही उम्दा !
बुरा मत मानियेगा....जिस वक्त आप चाँद को देख रहे थे....उस वक्त चाँद पर हमहीं बैठे थे....किसी पेड़ को देख रहे होते तो उसकी भी किसी टहनी पर हम ही होते....हम हर उस जगह होते हैं....जहां अच्छे शब्द अपनी मधुरता के संग पाए जाते हैं....शब्द कभी पत्ते बन जाते हैं....कभी लहरें.....कभी चांदनी.....कभी छाया....और हम....!!.......शब्दों के मुहंलगे हैं....!!
आज दिनों बाद ब्लौग का रूख किया और आपके इस पोस्ट पे आया तो पोस्ट की तारीख ने झकझोर दिया....पाँच सितम्बर की रात को कहीं बैठा था मैं भी पूरी रात खुले आसमान के तले इस चांद को निहारते...लेकिन मन की विचलित हालत कमब्खत एक मिस्रा तक बनने नहीं दे रही थी।
आपकी ये नन्हीं कविता तो बहुत सुंदर है। तारों की भीड़ में अमावस की पीड़ है जिंदगी...सचमुच तो!
तारों की भीड़ में
अमावास की पीर है जिन्दगी
sanjeed`gi se bharpoor
bahut achhee rachna . . .
---MUFLIS---
तुम इतने ही दूर बने रहो, लगभग अलभ्य. अद्भुत भाव जगाता है चाँद इतना दूर रह कर भी.
' कुछ यूँ ही बैठे बैठे ' ही ' सब कुछ ' होता है पुखराज जी ! धवल चांदनी में भी ' अमावस की पीर है ज़िन्दगी ' यदि प्रिय का साथ न हो तो !....रेशमी एहसासों की खुशबू बिखेरती एक सुन्दर रचना !
kabhi kabhi yun hi aadmi kitni acchi baat keh jata hai:
"जिन्दगी रखती हाथों पे
अगर तुम मेरे साथ होते ..."
aapka 'maun' (pichli kavita) bhi badhiya tha...
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