धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा
उधड़ गये हैं
प्यार के धागे
चुभने लगे हैं
फूल भी यहाँ
रंग चुराए थे
आसमान से मैने
छूते ही मेरे क्यूँ
बदरंग हो गये
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा
उधड़ गये हैं
प्यार के धागे
चुभने लगे हैं
फूल भी यहाँ
रंग चुराए थे
आसमान से मैने
छूते ही मेरे क्यूँ
बदरंग हो गये
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये
17 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति।
शब्दों का सफर पर आने के लिए शुक्रिया...
mind blowing!
पुखराज जी. आज पहली बार ही पढा आपको....प्रभावित हुआ ..और देखिये फोल्लो कर रहा हूँ..ताकि अब aapkee लेखनी से निकला कुछ भी छूट न पाए..
छोटे छोटे शब्दों से रचा गया सुंदर काव्य.
very nice
धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. पढ़ कर अच्छा लगा.
Ap to sundar likhte hain, ham bachhon ke liye bhi kuchh likhen.
Wishing u happy icecream day...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya" .
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा
aisa laga jaise koi ahsaas abhi abhi naraj hokar gujra hai......
कितनी नफ़ीस बुनावट थी.......
इंसान ने उधेड़ दी दुनिया.
bahut pyari poem hai....amarjeet kaunke
aisa laga ki itni jaldi khatam ho gayi...aisa laga ki koi ahsas dastak dene laga hai ...
एक अनूठी शैली...एक बेजोड़ रचना...
and please remove this word-verification thing from your post-box.it doesn't help at all, it rather irritates thr readers...
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये
bahut hi dil karib lagi yah rachana .....
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये
bahut hi behtar man ko chhoone vaale bhav.badhai!!!!
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
पुखराज जी आपको आज पढने का मौका मिला...आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...शब्द और भावः का अद्भुत संगम है आपकी रचना में....माँ सरस्वती आप पर हमेशा यूँ ही मेहरबान रहे...
नीरज
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे..amazing...really a wonderful creation....
धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
laazwaab aur shaandar .
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