Saturday, July 18, 2009

जिंदगी को धुएँ मे उड़ाता....


धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा
उधड़ गये हैं
प्यार के धागे
चुभने लगे हैं
फूल भी यहाँ
रंग चुराए थे
आसमान से मैने
छूते ही मेरे क्यूँ
बदरंग हो गये
इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये

17 comments:

अजित वडनेरकर said...

सुंदर अभिव्यक्ति।
शब्दों का सफर पर आने के लिए शुक्रिया...

Vinay said...

mind blowing!

अजय कुमार झा said...

पुखराज जी. आज पहली बार ही पढा आपको....प्रभावित हुआ ..और देखिये फोल्लो कर रहा हूँ..ताकि अब aapkee लेखनी से निकला कुछ भी छूट न पाए..

sanjay vyas said...

छोटे छोटे शब्दों से रचा गया सुंदर काव्य.

Anonymous said...

very nice

धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. पढ़ कर अच्छा लगा.

Akshitaa (Pakhi) said...

Ap to sundar likhte hain, ham bachhon ke liye bhi kuchh likhen.
Wishing u happy icecream day...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya" .

डॉ .अनुराग said...

मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना
तिनका तिनका
बिखर गया है
ठहर जिंदगी
चुन लूँ ज़रा

aisa laga jaise koi ahsaas abhi abhi naraj hokar gujra hai......





कितनी नफ़ीस बुनावट थी.......
इंसान ने उधेड़ दी दुनिया.

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut pyari poem hai....amarjeet kaunke

Anonymous said...

aisa laga ki itni jaldi khatam ho gayi...aisa laga ki koi ahsas dastak dene laga hai ...

गौतम राजऋषि said...

एक अनूठी शैली...एक बेजोड़ रचना...

गौतम राजऋषि said...

and please remove this word-verification thing from your post-box.it doesn't help at all, it rather irritates thr readers...

ओम आर्य said...

इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये

bahut hi dil karib lagi yah rachana .....

Prem Farukhabadi said...

इंद्रधनुष रखा था
पलकों पे
ख्वाब लेके
तुम सो गये

bahut hi behtar man ko chhoone vaale bhav.badhai!!!!

नीरज गोस्वामी said...

मुस्कुराहटें मे
ऑड लूँ ज़रा
पहन लूँ
कोई आईना

पुखराज जी आपको आज पढने का मौका मिला...आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...शब्द और भावः का अद्भुत संगम है आपकी रचना में....माँ सरस्वती आप पर हमेशा यूँ ही मेहरबान रहे...
नीरज

डिम्पल मल्होत्रा said...

वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे..amazing...really a wonderful creation....

ज्योति सिंह said...

धुँआ धुँआ जिंदगी
उड़ी जा रही
बिखर रहा है
सब कुछ यहाँ
वक़्त से कह दो
यहाँ रुके
कोई नहीं जो
दे आवाज़ मुझे
laazwaab aur shaandar .