Sunday, July 5, 2009



विरह के मारे
दो नैनो में
फ़िर उतर आई धूप ।
कल फ़िर बरसे थे बादल
सबकी आंखों से छुप छुप ।
कच्ची माटी की हांडी सा
रीता था मन ये मेरा ,
न मनन , न कोई चिंतन ,
अटखेली करता था हरदम ,
प्रेम जल जब से भर गया है ,
आशंकित है , भयभीत है ,
मन ये मेरा ,
रूठे जाए है ,
तडपत जाए है ,
आओ फ़िर हमें ,
मना लो तुम .....

12 comments:

ओम आर्य said...

atisundar ..........ruthi huee achchhi kawita

दर्पण साह said...

AAO PHIR....


WAH YE NOSTALGIA !!

के सी said...

एक छोटी सी कविता को आपने कितने मूड में लिखा है आरम्भ में हिंदी का पूर्वार्द्ध बाद में लोक और अंत में कुछ उर्दू के शब्द
दुआ हमारी भी है दिल से आओ फ़िर हमें ,मना लो तुम .....

डॉ .अनुराग said...

वो दोपहर जब तुम
टूट कर मिली थी मुझसे
उसकी धूप
आज भी मेरे मन के आँगन में उतरा करती है

ज्योति सिंह said...

विरह के मारे
दो नैनो में
फ़िर उतर आई धूप ।
कल फ़िर बरसे थे बादल
सबकी आंखों से छुप छुप ।
कच्ची माटी की हांडी सा
रीता था मन ये मेरा ,
न मनन , न कोई चिंतन ,
अटखेली करता था हरदम ,
प्रेम जल जब से भर गया है ,
आशंकित है , भयभीत है ,
मन ये मेरा ,
रूठे जाए है ,
तडपत जाए है ,
आओ फ़िर हमें ,
मना लो तु...
bahut hi khoobsurat .

Anonymous said...

उनसे फिर मिलने को जी चाहता है...
कुछ कहने कुछ सुनने को जी चाहता है...
था उनके मानाने का अंदाज़ कुछ ऐसा...
फिर रूठ जाने को जी चाहता है...

मगर रूठ कर लिखना मत छोड़ देना... कलम पर दम दिखाओ

Anonymous said...

उनसे फिर मिलने को जी चाहता है...
कुछ कहने कुछ सुनने को जी चाहता है...
था उनके मानाने का अंदाज़ कुछ ऐसा...
फिर रूठ जाने को जी चाहता है...

मगर रूठ कर लिखना मत छोड़ देना... कलम पर दम दिखाओ

anil said...

अतिसुन्दर .......... अच्छी कविता

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता बहुत ही सुंदर लगी....
धन्यवाद

Vinay said...

बहुत ही लाजवाब कविता है
---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

सुशील छौक्कर said...

बहुत ही सुन्दर।

Rajat Narula said...

its a great composition... really superb...