विरह के मारे
दो नैनो में
फ़िर उतर आई धूप ।
कल फ़िर बरसे थे बादल
सबकी आंखों से छुप छुप ।
कच्ची माटी की हांडी सा
रीता था मन ये मेरा ,
न मनन , न कोई चिंतन ,
अटखेली करता था हरदम ,
प्रेम जल जब से भर गया है ,
आशंकित है , भयभीत है ,
मन ये मेरा ,
रूठे जाए है ,
तडपत जाए है ,
आओ फ़िर हमें ,
मना लो तुम .....
12 comments:
atisundar ..........ruthi huee achchhi kawita
AAO PHIR....
WAH YE NOSTALGIA !!
एक छोटी सी कविता को आपने कितने मूड में लिखा है आरम्भ में हिंदी का पूर्वार्द्ध बाद में लोक और अंत में कुछ उर्दू के शब्द
दुआ हमारी भी है दिल से आओ फ़िर हमें ,मना लो तुम .....
वो दोपहर जब तुम
टूट कर मिली थी मुझसे
उसकी धूप
आज भी मेरे मन के आँगन में उतरा करती है
विरह के मारे
दो नैनो में
फ़िर उतर आई धूप ।
कल फ़िर बरसे थे बादल
सबकी आंखों से छुप छुप ।
कच्ची माटी की हांडी सा
रीता था मन ये मेरा ,
न मनन , न कोई चिंतन ,
अटखेली करता था हरदम ,
प्रेम जल जब से भर गया है ,
आशंकित है , भयभीत है ,
मन ये मेरा ,
रूठे जाए है ,
तडपत जाए है ,
आओ फ़िर हमें ,
मना लो तु...
bahut hi khoobsurat .
उनसे फिर मिलने को जी चाहता है...
कुछ कहने कुछ सुनने को जी चाहता है...
था उनके मानाने का अंदाज़ कुछ ऐसा...
फिर रूठ जाने को जी चाहता है...
मगर रूठ कर लिखना मत छोड़ देना... कलम पर दम दिखाओ
उनसे फिर मिलने को जी चाहता है...
कुछ कहने कुछ सुनने को जी चाहता है...
था उनके मानाने का अंदाज़ कुछ ऐसा...
फिर रूठ जाने को जी चाहता है...
मगर रूठ कर लिखना मत छोड़ देना... कलम पर दम दिखाओ
अतिसुन्दर .......... अच्छी कविता
आप की कविता बहुत ही सुंदर लगी....
धन्यवाद
बहुत ही लाजवाब कविता है
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत ही सुन्दर।
its a great composition... really superb...
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