Wednesday, May 27, 2009

शिकायत नही ज़माने से ...


आज दिल ने फ़िर तमन्ना की ...कोई ग़ज़ल लिखी जाए ....शब्द ...! शब्द ...ह्म्म्म कहाँ से शुरू की जाए ....सागर , समंदर , आसमान , किताबें ,पेड़ , हवाएं , ....कहाँ से शुरू करूँ .....ये आसमान ये बादल... ये रास्ते... ये हवा ...
हरेक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने पे ...कई दिनों से शिकायत नही ज़माने से ....


ऊँची लहरों में मुझे कश्ती तैरना आ गया ,
साहिल से वादा निभाना आ गया ....
जिन्दगी अश्कों से आशना न थी ,
हमको भी गम छुपाना आ गया .....
बिछड़ने की बातें मत करो यारों ,
कह दो यादों का मौसम सुहाना आ गया ...
बाद मुद्दत के मिली है तन्हाई ,
ख़ुद से बातें करने का ज़माना आ गया ...
चाहतों की बातें हैं ये तो ,
वरना उसे क्यों काम पुराना याद आ गया ....

7 comments:

Udan Tashtari said...

बाद मुद्दत के मिली है तन्हाई ,
ख़ुद से बातें करने का ज़माना आ गया ...
चाहतों की बातें हैं ये तो ,
वरना उसे क्यों काम पुराना याद आ गया ....

-बढ़िया है

गौतम राजऋषि said...

प्रयास अच्छा...सुंदर भाव..मोहक शब्द
किंतु ग़ज़ल शर्तिया नहीं।

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है .. बधाई।

Anonymous said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति.....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

के सी said...

बहुत अच्छा लिखा है पर इसे ग़ज़ल कहना जरूरी नहीं है ये दिल की बात है इसको किसी नियम में क्यों बांधना ? लिखते रहिये और गौतम जी से कुछ टिप्स भी ले लीजिये.

daanish said...

बिछड़ने की बातें मत करो यारों ,
कह दो यादों का मौसम सुहाना आ गया ....

achhi soch...
achha lehja..
yaqeenan,
achhi rachna..

gautamji aur kishorji ki tippaniyaaN bhi
kisi achhi rachna se kabhi km nahi hoteeN,,,
hamesha apne-pn se likhte haiN.

---MUFLIS---

Renu goel said...

आप सभी ने जो हौसलाफजाही की उसका बहुत बहुत शुक्रिया....
ख़ास कर गौतम जी , किशोर जी और मुफ़लिस जी ....
ग़ज़ल लिखने के किसी नियम को जाने बिना ही
अपनी भावनाओ को कागज के टुकड़े से कह देना
हो सकता है ग़लत हो पर ये जो कम्बख़्त दिल है
बस कुछ ना कुछ कानो मे कहता रहता है...
उम्मीद करती हून गौतम जी मुझे ग़ज़ल लिखने
की टिप्स देते रहेंगे ....साथ ही अगर अंजाने मे
आपकी भावनाओ को ठेस पहुचाई हो तो माफी...