Tuesday, August 27, 2013

ये कैसी गर्म हवा है 
बहते आंसू ही सूख गए है 
तड़प उठी हैं पेड़ों की शाखें 
कहाँ अब बादल गए हैं। । 
नरमी लेकर आते थे 
दिल भीग जाता था अक्सर 
कोमल पांवों को अब 
चुभते पत्थर दे गए हैं। 
यूँ न कतराओ हमसे 
बीते मौसम लौट आओ 
परेशां है रात सारी 
दिन भी बुझ से गए हैं। । 


3 comments:

अजय कुमार झा said...

सच ! जाने ये कैसी गर्म और खुश्क हवाएं हैं ।
सुंदर , भावपूर्ण पंक्तियां

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई.

PurpleMirchi said...

Thanks for sharing ! Movers and Packers in Bangalore Online