pukhraaj
एक सबब मरने का , एक तलब जीने की , चाँद पुखराज का , रात पश्मीने की ...
Tuesday, August 27, 2013
ये कैसी गर्म हवा है
बहते आंसू ही सूख गए है
तड़प उठी हैं पेड़ों की शाखें
कहाँ अब बादल गए हैं। ।
नरमी लेकर आते थे
दिल भीग जाता था अक्सर
कोमल पांवों को अब
चुभते पत्थर दे गए हैं।
यूँ न कतराओ हमसे
बीते मौसम लौट आओ
परेशां है रात सारी
दिन भी बुझ से गए हैं। ।
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)