अरे ! यहाँ इसी गाँव में ,
एक नदी हुआ करती थी |
अल्हड , चंचल , शोख सी ,
थोड़ी मासूम ओस सी ,
इसी गांव में रहती थी ,
अनगिन लहरें उसकी ,
उठती , गिरती , फिर उठती ,
उमंग से भरी ,
ममता से भरी ,
अंक में भर लेती थी मुझको ,
मेरे तमाम विषादों को ,
अपने ह्रदय तल में जा रखती |
वो नदी कहाँ गयी ?
वो यहीं कहीं हुआ करती थी,
वो नदी कहाँ गयी ?
चिलम भर कर बैठे काका ,
हुक्का गुड गुडाना भूल गए ,
हाथ हवा में उठ गए ,
पलकों के किनारे भीग गए ,
बोले , एक तूफ़ान ऐसा आया ,
कुछ भी न बच पाया ,
आबरू उस चंचला की
तार तार हो गयी ,
लुटी तरंगिनी एक दिन
खुद ही में सिमट गयी ,
शर्म से हर पल मरती
वो सरिता बहना भूल गयी ,
जब कोई ठौर न पाया ,
धरती की गोद में सो गयी |
बिन लाडो सूना गाँव अब ,
बरखा को तरसता गाँव अब ,
हर साल गए सावन आता है ,'
झूले खाली देख लौट जाता है ,
बूढी माँ सूखे आंसू रोती है ,
वो निर्झरा वो सरस्वती ,
अब धरती के नीचे बहती है |
एक नदी हुआ करती थी |
अल्हड , चंचल , शोख सी ,
थोड़ी मासूम ओस सी ,
इसी गांव में रहती थी ,
अनगिन लहरें उसकी ,
उठती , गिरती , फिर उठती ,
उमंग से भरी ,
ममता से भरी ,
अंक में भर लेती थी मुझको ,
मेरे तमाम विषादों को ,
अपने ह्रदय तल में जा रखती |
वो नदी कहाँ गयी ?
वो यहीं कहीं हुआ करती थी,
वो नदी कहाँ गयी ?
चिलम भर कर बैठे काका ,
हुक्का गुड गुडाना भूल गए ,
हाथ हवा में उठ गए ,
पलकों के किनारे भीग गए ,
बोले , एक तूफ़ान ऐसा आया ,
कुछ भी न बच पाया ,
आबरू उस चंचला की
तार तार हो गयी ,
लुटी तरंगिनी एक दिन
खुद ही में सिमट गयी ,
शर्म से हर पल मरती
वो सरिता बहना भूल गयी ,
जब कोई ठौर न पाया ,
धरती की गोद में सो गयी |
बिन लाडो सूना गाँव अब ,
बरखा को तरसता गाँव अब ,
हर साल गए सावन आता है ,'
झूले खाली देख लौट जाता है ,
बूढी माँ सूखे आंसू रोती है ,
वो निर्झरा वो सरस्वती ,
अब धरती के नीचे बहती है |