Sunday, December 6, 2009

एक नगमा गाने को जी करता है


ऐ रात उतर आ आखों में
सपने देखने को जी करता है ...
फूल , बाग़ और खुशबू बहुत देखी
समंदर , झील और नदिया भी देखी
रूप बदलते इंसान भी देखे
गले मिलते जमीन और आसमान भी देखे
तारों की डोली से उतरते चाँद देखे
ज़री वाले घर आँगन भी देखे
ढेर सी बातें करने को जी करता है ...
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....
खिलखिला कर हंस देंगी खिड़कियाँ
दिल के दर खोल देंगी खिड़कियाँ
सीढियां टाप कर घर आ जाना
मेरे गालों पर फिसल जाना
पाकीजा हैं मेरी खूशबूयें
रंग भरती हैं कूचियाँ
फ़िर कसमे खाने को जी करता है ...
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....
सरगोशियों से काम न चलेगा
तस्वीर से निकल कर आ जाना
चाँद की बरात सजी है
तुम भी सज संवर जाना
तारों से मांग भर लेना
अपना आँचल लहरा देना
प्यारा सा गीत गाने को जी करता है ....
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....

23 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर...कोमल रचना!

Anonymous said...

बेहतरीन रचना. सपनो मे खोया हुआ.

M VERMA said...

उपरोक्त कमेंट मैने किया है गलती से Anonymous के रूप मे चला गया

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत ही सुन्दर रचना और उतना ही अच्छा आपका ब्लॉग....

अजय कुमार झा said...

वाह क्या जी किया आपका और क्या गाया आपने ,,

IRFAN said...

Shaayad har insaan jiske man mein prem ho,aisa hi karan chahta hai.
aapke kalaam ki daad deni hogi..
pl. keep it up.

Khushdeep Sehgal said...

यादों में वो,सपनों में है
जाएं कहां,धड़कन का बंधन तो धड़कन से है,
मैं सांसों से हूं कैसे जुदा,
अपनों से लूं कैसे विदा...
यादों में वो...

(बेहतरीन अभिवयक्ति के लिए आभार...बंदे का घोंसला भी मेरठ आबू लेन पर हुआ करता है...लेकिन फिलहाल उड़ते-उड़ते नोएडा में किसी पेड़ की शाख पर डेरा डाल रखा है...)

जय हिंद...

अजय कुमार said...

सपना दिख जाये तो बताइयेगा कि क्या क्या दिखा

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर सहज रचना है। आप इसी तरह नग्मे गाती रहिये। शुभकामनायें

Anonymous said...

रूप बदलते इंसान भी देखे
गले मिलते जमीन और आसमान भी देखे
तारों की डोली से उतरते चाँद देखे
ज़री वाले घर आँगन भी देखे
ढेर सी बातें करने को जी करता है ...
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....

बहुत खूब लिखा...
मीठे सपनो में खो जाएँ
चल कहीं दूर निकल जाएँ

पंकज said...

बेहद सुंदर.

डॉ .अनुराग said...

कई बार कुछ अहसास शब्दों में बंध कर भी सफ्हो पर उड़े उड़े से फिरते है ....

गौतम राजऋषि said...

ग़ज़ब की फ्लो लिये हुये लिखी गयी कविता...

आपने इसे धुन भी दिया है क्या, मैम?

Renu goel said...

गीत पसंद करने का आप सभी का शुक्रिया ....
@गौतम जी , अभी तक तो लिखना ही सीखा है जिस दिन सुर देना शुरू करेंगे , सुना भी देंगे और सबकी छुट्टी भी कर देंगे

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अति सुन्दर! अति सुन्दर!!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

सपने देखने को जी करता है ....
सरगोशियों से काम न चलेगा
तस्वीर से निकल कर आ जाना
चाँद की बरात सजी है
तुम भी सज संवर जाना
तारों से मांग भर लेना
अपना आँचल लहरा देना
प्यारा सा गीत गाने को जी करता है ....
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....

सुन्दर और कोमल भावनओं की अभिव्यक्ति बहुत खूबसूरती के साथ किया है आपने---
हेमन्त कुमार

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत भावपूर्ण रचना...आप तो कमाल का लिखती हैं...वाह...
नीरज

daanish said...

मन में छिपी चाहतों की
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ती
शब्द-शब्द जादू-सा बिखरा पड़ा है...
काव्य का प्रभाव सर चढ़ कर बोल रहा है
अभिवादन स्वीकारें

ज्योति सिंह said...

bahut sundar nagma jise dil ne gungunaya ,kho gayi padhte huye

पूनम श्रीवास्तव said...

चाँद की बरात सजी है
तुम भी सज संवर जाना
तारों से मांग भर लेना
अपना आँचल लहरा देना
प्यारा सा गीत गाने को जी करता है ....
ऐ रात उतर आ आंखों में
सपने देखने को जी करता है ....

Khoobasurat bhavon kee shandar prastuti.shubhakamnayen.
Poonam

Pawan Kumar said...

नाजुक एहसासों की कविता......अच्छा ख्याल अच्छे शब्द......!
हम तो पहली बार आपके ब्लॉग आये बहुत ही उम्दा लेखन...बधाई!

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्दर रचना और उतना ही अच्छा आपका ब्लॉग....