Monday, November 23, 2009

परदेस

गली में क्रिकेट खेलते लड़कों की खरखराती तीखी सी आवाज ....पता चलता है लड़के जवान हो रहे हैं आउट .......जब कोई लड़का आउट हुआ तो सारे चिल्लाये ....बस बेटिंग करने वाला बच्चा उर्फ़ लड़का ....नहीं , नहीं ...मेरे बैट से तो बॉल टच ही नहीं हुयी ...फ़िर मै आउट कैसे ?
पर सारे लड़कों ने मिलकर उसे आउट कर दिया ... भुनभुनाता हुआ पहुँचा मम्मी के पास ...
मुंह फुलाकर बैठा है ... ओफ्फ्फो ...इस लड़के का क्या करूँ रोज लड़कर आता हैं ...
आज क्या हुआ ....?
( चुप्पी)
चलो हाथ मुंह धो लो कुछ खाने को देती हूँ
कल सामने वाले भटनागर साब के यहाँ बॉल चली गई थी तब भी सहायता के लिए पुकार ....मझधार में बेडा पार कराने वाली मैया ...
मैया मोरी मै नहीं छक्का लगाओ ...न जाने कैसे बॉल अंकल के आँगन गिरी ...
उन्होंने बॉल छुपाओ ...
मैया मोरी ...
फ़िर से माँ ...
बसंत पंचमी आती ...पतंगों का मौसम , स्कूल से बंक, सुबह से पतंगों की पिटारी , चरखी और मंझा ...
चलो आसमान छु आयें ....
वो काटा .... उधर पतंग कटी , इधर मंझे से ऊँगली ....फ़िर याद आई मम्मी ...

अब बेटा विदेश चला गया हैं अब माँ को बेटे की याद आती हैं ... बेटा ,..... तेरी चरखी , तेरा मांझा , तेरी गेंदें ...सब मैंने संभाल कर राखी हैं ....
तू कब आएगा बेटा ....

Wednesday, November 4, 2009








सुलग
रहा है दिल उठ रहा है धुआं
दरवाजा खोल दे या आग बुझा दे यारां
मुफलिसी के दोरों से गुजरता चला गया
सोना , पाना अच्छा न था और खोना बुरा यारां
सच्चे दिल की दुआ कुबूल होती है
सजदे में सर झुके या हाथ उठें यारां
चौखट का दिया हूँ रौशनी कर ही जाऊंगा
चाँद लम्हों की मोहलत तो दे मुझे यारां
मुरीद हूँ आसमान का मै भी चाँद की तरह
कि झील में गिरकर भी बुझता नही यारां
सर उठा कर लहरों ने मदद को पुकारा था
किनारे पर आकर दम तोड़ गयीं यारां