ऐसे तो अपने ही गम कम न थे ....जिन्दगी में बहारें कब आयीं .. कब जाकर सहरा को साथ ले आयीं, पता ही न चला था ....मसरूफियत और क्या ....फ़िर भी जिन्दगी की उतरती देहरी की शाम में भी उसने हिम्मत नही छोड़ी थी ...सोचा जिन खुशियों के सपने वो हमेशा संजोता रहा , उन्हें दूसरों के दामन में क्यों न डाल दिया जाए ...
पैसा तो ऐसा की घरोंदों की दीवारों में गिन्नियां जडी थीं ....फ़िर मुश्किल क्या ....निकल चल संता क्लॉज़ ....
गमो से जो भरा पड़ा हो दिल तो वह मांस का लोथडा बस धड़कता है , न हँसता है न रोता है ....ये दिल कम्बखत अपने दुखों से खाली हो तो खुशियों के लिए जगह बने ...पल दो पल की मेहमान खुशी के लिए दिल अपने कमरे का एक कोना खाली कर देता है .............बस ....
उसके लिए तो इतना ही काफ़ी था ...कोई दरवाज़ा, कोई झरोखा तो खुले फ़िर धीरे धीरे खुशी अपना साम्राज्य स्थापित कर लेगी ...
बस यही था संता क्लॉज़ बन्ने का फंडा....
इसी फंडे को लेकर घूमता रहा , घूमता रहा , घूमता रहा ...जो मिलता उसी के गम को अपने हार्ट बैंक में जमा कर लेता ....करता रहा ....और उनकी खिड़कियों को खोल आया था खुशियों के लिए
धीरे धीरे उसका हार्ट बैंक भरने लगा फ़िर भी वो उसे भरने में लगा रहा ....मैंने कहा लालच बुरी बला है ...नही माना ....
मत मानो ..मेरा क्या है ....न आशियाँ मेरा था न मेहमान मेरे ....
पर अब क्या ...अब हार्ट बैंक का खजाना मल्टी नॅशनल बैंक में जमा करना था ....इशु ..ईश ...रब्बा ... गौड, मल्टी नेशनल बैंक ...मल्टी नामो से उपलब्ध ....
तो ....चलें संता क्लॉज़ ......
हाँ ....अब बारी आ ही गई .....चलो .....
8 comments:
चलो!!!!!!!!!!!!!!!
मैं इसे स्क्रू कह सकता हूँ एक बिम्ब जो बिना समाधान तलाशे अपनी उपस्थिति और उपयोगिता को दर्शाता है. आपने पूरा टेम्पलेट बदला तो कोई बात नही पर अब उन विजेट्स की याद आती है कई बार होमेस्टर को दौड़ाते और फीड करते हुए मन को एकाग्र किया है. मेरा छोटू भी उसको याद कर रहा है हालाँकि मैं उस विजेट को कहीं भी लगा लूं या ओपन कर लूँगा पर कुछ दृश्य जहां देखे होते हैं वहीं सुहाते हैं.
bas yahi iccha hai ki santa ban jaun... aur duniya ko khushiyon ka khazana baant doon....
किशोर जी
आपने विजेट्स पसंद किए , उसका धन्यवाद...
असल मे इन विजेट्स ने इस टेम्पलेट का साथ नही
दिया ....तब मैने स्लाइड शो लगा दिया ....अब आपकी
फरमाइश पर फिर से कोशिश करूँगी उन विजेट्स को
ब्लॉग पर लाने की ....
aapki rachna padhne ka alag hi anand hai .
kahan iss garmi mein Santa Clauss yaad aa gaye.....
मन की गहराईयों में उठ रही
कशमकश का सुन्दर लेखा-जोखा
एक दिलचस्प रचना
अभिवादन
और ....
शुक्रिया
---मुफलिस---
सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।
हर जगह हिसाब किताब .....जिंदगी जैसे कोई बही खाता है...
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