Saturday, May 9, 2009

माँ की पाती बेटी के नाम....

बेटियाँ तो होती हैं गंगा अविरल अनवरत प्रवाहमय,
दुर्गम मार्गों के बीच बनाती हैं अपनी राह,
चत्त्तन ह्रदयों के गर्व को अपने वेग से चूर करने वाली,
कौन रोक सका है गंगा, यमुना और सरस्वती को,
कितने ही बाँध बना लो अपनी सोचों के
कितने ही पत्थर लुढ़का लो संस्कारों की दुहाई के,
अपने उद्गम स्थल से निकली हैं गर ये गोमती,
लक्ष्य कर चुकी है तय प्रतिज्ञा की है अपने आप से,
फ़िर खोने का प्रश्न उठता ही नही,
लड़ती समाज के ठेकेदारों से, अपने ही किनारों से,
मंजिल पर जाकर ही दम लेंगी ये
अविरल, अनवरत, प्रवाहमय गंगा, ये हमारी बेटियाँ ....
कुछ पंक्तियाँ बेटियों के बारे में मुझे प्राप्त हुयीं
....ओस की बूँद सी होती है बेटियाँ,
स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती हैं बेटियाँ,
रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को
दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियाँ
हीरा अगर है बेटा तो सच्चा मोटी है बेटियाँ,
काटों की राह पे ख़ुद ही चलती रहेंगी,
औरों के लिए फूल बोथी हैं बेटियाँ,
विधि का विधान है ,यही दुनिया की रसम है,
मुट्ठी भर नीर सी होती हैं बेटियाँ,
घर के आँगन की तुलसी होती हैं बेटियाँ,
हर गम को खुशी में बदल देती हैं बेटियाँ
पोधों की शाख पर जब हरियाली न हो,
उन पोधों में रंग भर देती हैं बेटियाँ,
एक अनोखा रिवाज है जग में मेरे दोस्त,
माँ की ममता समेटी हैं बेटियाँ ....

6 comments:

Anonymous said...

Mothers hold their children's hands for a short while, but their hearts forever.

Salute to Mothers on this special day...

के सी said...

बहुत सुन्दर लिखा है दिल को छू जाने वाला कोमल भावनाओं से भरा हुआ

ओस की बूँद सी होती है बेटियाँ,

Anonymous said...

बेटियाँ तो होती हैं गंगा अविरल अनवरत प्रवाहमय,
दुर्गम मार्गों के बीच बनाती हैं अपनी राह,

kaash yeh sangharsh ki gaatha har dil tak pahunche taaki betiyaan samaan izzat paa sake...lekin, lekin.....aap ko nahin lagta ki ek aurat hi betiyon ki sabse badi dushman bhi hoti hain ?

MANVINDER BHIMBER said...

bahut sunder ....likhte rahiye

kanchan singh chouhan said...

पुखराज जी..! बेटियों पर बहुत अच्छा और संवेदनशील लिखा आपने।

मेरे ब्लॉग पर आने और पोस्ट पढ़ने का धन्यवाद। मगर थोड़ा जल्दी में आने और बिना पढ़े ही अपने बहुमूल्य विचार देने का कष्ट। बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप और बहुत समय दे कर विचचार दिये आपने मगर...! पोस्ट पढ़नेमें थोड़ा कम समय दिया इस बात का मलाल है। आपने अपनी टिप्पणी में लिखा

पर आपने कहा पहाड़
आपको अच्छे नही लगते ...उनमे कोई जीवन के
लक्षण नही दीखाई देते .. पर ऐसा नही है ....
नज़रिया बदलें तो उन पर खिली हरियाली को देखो
तो वो हंसते नज़र आएँगे .....उनसे फूटे झरनो को देखो वो रोते नज़र आएँगे ....उनसे टकराकर जब
हवा हम तक आती है तो लगता है वो हमसे बातें
कर रहे हैं .....और जिंदा होने के लिए और कौन
सी शर्तें हैं ...सजीवों मे तो जीवन होता ही है
निर्जीओों मे जीवन ढूढ़ें तो कोई बात हो ....
मगर शायद आपने मेरी पोस्ट की इन पंक्तियों को नही पढ़ा

और वहीं उन पहाड़ों को देखिये, कितना विशाल लगता है उनका अस्तित्व। यूँ तो पत्थर उनमे भी है, मगर उनमें बर्फ की शीतलता भी है, पेड़ों की हरीतिमा भी है, और पत्थरों की स्थिरता भी। जैसे लगता है कि कभी वे हँस रहे है...लोगो को सुख दे रहे है और कभी बस गंभीर से हो जाते हैं। उनके अंदर झाँक के देकौ तो एक नदी होती है उनके अंदर... भावनाओं की..संवेदनाओं की...! वो अपनी कहानि स्वयं कहते हैं, बिना कुछ कहे ही। वे लोगो को ऊँचाइयाँ देते हैं, वे हमेशा हँसते रहते हैं और अंदर से आँसुओं की नदी से भीगे रहते हैं। मुझे पहाड़ बहुत अच्छे लगते है...! बहुत अच्छे..!:) :) :)

पुनः एक बार अपना बहुमूल्य समय निकाल कर आयें और अपनी शिकायत दूर कर लें

इतना सब पोस्ट पर लिखना पड़ा क्योंकि आपका मेल आईडी आपके कमेंट के साथ नही आया था। अन्यथा आपको व्यक्तिगत रूप से ही मेल करती।

क्षमा
धन्यवाद

ज्योति सिंह said...

betiyon ke dard seemahin hai magar khusiyan ye hi bikherati hai .man bhar gaya aur dard bhi yah rachna dekhkar .hamaare samaaj me inke vaaste bahut kathor niyam-kayede hai .jo ki kab badlega pata nahi .