Tuesday, May 5, 2009

चुनाव का मौसम

जब कुरुषेत्र में चुनावी महासमर का आयोजन किया गया तो पांडव और कौरव दोनों के पक्ष में बराबर वोट डले ....टाई हो हो गया था ...मामला फंस गया ...पार्टी दो ही थी ...तीसरी पार्टी होती तो गठबंधन सरकार बन जाती ....भीषण संकट उत्पन हो गया ....सोचा गया तो पता चला की कृष्ण जी ने अपना वोट डाला ही नही था ....महत्वपूर्ण वोट था ...डालना तो चाहिए ही....स्पेशल अर्रेंज्मेंट किए गए ....दोनों पार्टी के नेता ....(को पा-कौरव पार्टी )दुर्योधन और (पापा-पांडव पार्टी) अर्जुन, कृष्ण के पास गए ....हालाँकि अर्जुन पार्टी लीडर नही थे ...पर कृष्ण जी के मुहलगे चमचे थे ....सो युधिष्ठर के स्थान पर उन्हें भेजा गया ....

कृष्ण जी सो रहे थे ...दोनों जाकर पलंग पर बैठ गए ...बंसीधर की आँख खुली ....राजनीती कुशल तो थे ही ...लेटे-लेटे सारी बात समझ गए ....फ़िर राजमाता कुंती उनसे पहेले ही मिल चुकी थीं ....

कुंती क्रष्ण की बुआ थीं ...और इसके अलावा उनके उच्च पद से भली भांति परिचित थीं ...भाई भतीजा वाद काम आया ...कुंती ने उनके पास जाकर उन्हें संबोधित किया ..."हे प्रभु ! हम आपकी कृपा पर पूरी तरह से आश्रित हैं ...हमे सत्ता का शासन दिलाने वाला कोई दूसरा नही है ...उनका अभिप्राय कृष्ण के हस्तिनापुर में रह कर पांडवों के पक्ष में वोट डालने से था ...

तम्स्ये पुरुषं त्वध्मिश्वरम प्रक्रते परम ,

अलाक्ष्यम सर्वभूतानामअन्त्बहिर्व्स्थितम ।

श्रीमती कुंती ने कहा - में आपको नमस्कार करती हूँ ...क्यूंकि आप आदि पुरूष हैं और इस भौतिक जगत के गुणों से निसंग रहते हैं ....आप समस्त वस्तुओं के भीतर तथा बाहर स्थित रहते हुए भी सबों द्वारा अलक्ष्य हैं ....

कुंती ऐसी प्रबुद्ध महिला थीं की अच्छी तरह जानती थीं की उनका भतीजा सत्ता पलटने की ताकत रखता है इसलिए उन्हें सर्व शक्तिमान , आदि पुरूष के रूप में संबोधित किया ...

समोहयम सर्वभूतेषु न में दवेस्ह्योयस्ती न प्रियः ,

ये भजन्ति तू मम भक्त्या मयी ते तेषु चाप्य्हम ।

में न तो किसी से द्वेष करता हूँ , न ही किसी के साथ पक्षपात करता हूँ ...में सबों के लिए सम्भव हूँ ....किंतु जो भक्ति पूर्वक मेरी सेवा करता है वह मेरा मित्र है ....यह कहकर कृष्ण ने अपना वोट पांडवों के पक्ष में दिया ....सत्ता के चुनावी महासमर में पांडवों को जीत दिलाकर शासन दिलाया और युधिष्ठिर को सत्तारूढ़ कराया ...

अब देखा - एक वोट भी कितनी महत्वपूर्ण है ...

अतः -सही निर्णय , सही चुनाव , सही नेता ....कुछ समझे .....

5 comments:

के सी said...

धर्म और धारण से उपजे कर्मफलों पर आपने शानदार स्किट लिखा है, कल्पनाशीलत अद्भुत है प्रवाह भी सरस.

Anonymous said...

महाभारत का अच्छा उल्लेख है ... परन्तु मेरी पॉलिटिक्स में कोई रूचि नहीं
मेरा मानना है जिसमे कोई नीति नहीं वोही राजनीती है...
don't mind but i never interested in politics and politician
वैसे वोट डालना अलग बात है.. ज़रूर डालूँगा....

kanchan said...

Parul ki post par comment se, link karate hue aap ke blog par aai. bahut kuchh padha...achchha likht hai aap.

shubhkamaneN

Anonymous said...

good writing by the writer. But I think I have read the post somewhere in someother blog a few days back. Hope u should also mention the original source.
regards

renu said...

this is the original post ....not coppied from elswhere ....it may possible that someone copied my article ...but i can't do such nice things ....if you can locate the blog by which it is copied , please tell me the blog add...