Wednesday, April 22, 2009

एक पहलू

हनीमून जोड़ा बैठा है
शाहजहाँ मुमताज की कब्र पर
हाथों में हाथ डाले
आँखें बंद कर ...
जैसे उनकी रूहों से
प्रार्थना करते हों
उनके जैसा प्यार
हमारे बीच रहे सदा ....
फ़िर चक्कर लगाता है
कब्र के चारों और
जैसे उनका प्यार चुरा रहा हो
कब्र से
जैसे कोई मांग ले
तकलीफें किसी की ...
सच्चे दिल से निकली दुआ
कुबूल होती है
पर अब जिस्म हैं
रूहें कहाँ
कहने को प्यार है
पर दिल कहाँ
यहाँ मकबरे से बाहर जाने के बाद ...
वो हनीमून जोड़ा
कुछ ही समय में
बन जाता है सिक्का
और वो दोनों
सिक्के के दो पहलू....
जो साथ रहते तो हैं
मगर
एक दूसरे का चेहरा कभी नही देखते
फ़िर भी हनीमून जोड़े आते रहेंगे
मकबरे पर जाकर
प्यार की लम्बी उम्र की
दुआ मांगते रहेंगे
सदा.... सदा ....सर्वदा ....

4 comments:

Anonymous said...

जो प्यार कर गय वो लोग और थे

Anonymous said...

ikk tajmahal dil mein har koi hai banata...
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aur intezaar karta hai ki kab mumtaz marein

Anonymous said...

ik tajmahal dil mein, har koi hai banata.
bas intezaar hai kab mumtaaz marein.

ज्योति सिंह said...

taj ko kai baar dekha par is kavita se tasvir me bhinnta nazar aane lagi .ek baar rachana ke aadhar par jakar dekhna hoga .achchaa laga .isse juda ek purana gaana bhi yaad aa gaya .bachpan me padi hui kavita bhi .