एक ज्योतिष ने कहा ....
बरगद की पूजा करो
धन धान को
लक्ष्मी निवास को
आरोग्य वास को
भाग्योंन्नती को
एक दिया रोशन करो
पर कहाँ ...?
हरियाली कहीं नज़र नही आती
इमारतों की परछाई में भी
वो छांव कहाँ
बहुमंजिली ईमारत के पांचवे माले पर
बरगद उगा भी नही सकती
नर्सरी जा कर बरगद का बोनसाई
ले आई हूँ
अब नित दिए की रौशनी
दिखाती हूँ बरगद को
बदलता परिवेश
आस्था कैसे मगर बदले
गगनचुम्बी ईमारत
बोने होते खेत
हरियाली बचने की कोशिश में
बोना बाग़ लगाती हूँ
अब गमलों में
बरगद, अशोक , अमरुद ,
संतरा और सेव उगाती हूँ ....
4 comments:
वाह दुनिया मेरी मुट्ठी में कुछ दिनों बाद पर्स में होगी पूरी दुनिया ....
वैसे रिश्ते भी ऐसे ही छोटे होते जा रहे हैं.....
its not good for our new generation
sochne per mazboor kar diya iss post ne....very well said!!!
आपको पढ़कर ....जावेद अख्तर का शेर याद आ गया ....
"कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज खा गए "
Aaj ke is gaganchumbi imaraton ke yug mein kheton aur baagon ke baune hone ke saath saath ab to aasthayen bhi bauni hotee ja rahee hain. Puraane reeti-rivaj sabhee khatm hote jaa rahe hain.
Aaj kee peedhee ko yeh samjhaane ka bahut hee achha prayaas hai.
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