Sunday, April 5, 2009

दोस्ती .... अब वो कहाँ

दोस्ती का वो अदब अब है कहाँ
जिस्म के शिकार हर तरफ़ यहाँ ।
भटकती हैं राहें यारां चारो सिम्त
कौन जाने किसकी मंजिल है कहाँ ।
गा रहा है दीवाना मलंग कोई
ना मै यहाँ हूँ ना तू है वहाँ ।
वो तो मौसम ही मेहरबान हो गया था
वरना तेज धूप में बरसात कहाँ ।
टूटे कांच सा चुभता है हर लम्हा
तुमने महसूस किया है ये दर्द कहाँ ।
हँसते हँसते आंसू पी जाते हो तुम
आंसूओं के साथ जीते है हम यहाँ ।

2 comments:

Anonymous said...

वो तो मौसम ही मेहरबान हो गया था

वरना तेज धूप में बरसात कहाँ
great lines...straight from the heart, straight from life...

Anonymous said...

dosti jab bhi kisi se kiya kijiye
dushmano ki bhi salah liya kijiye....