आंधी से सैलाब से
कब डरी हूँ मै ,
शोला हूँ चिंगारी हूँ
लपटों में घिरी हूँ मै ,
हालात ऐसे आते हैं
जो मुझे डराते हैं ,
पैदा करने वाले ही
मुझसे कतराते हैं ,
इश्क़ के नकली फूल
मेरी कब्र पर चढ़ाते हैं ,
प्यार के थोथे समुन्दर से
डूब के उबरी हूँ मै। .......
माला में पिरा
मोती नहीं ,
दीप है पर
ज्योति नहीं ,
तन्हां हूँ मगर अपनी
आस छोड़ती नहीं,
किनारा हूँ लहरों का
मर्यादा अपनी
खोती नहीं ,
अंसुअन तन
भीगी हूँ मै ,
ताप में तप के
तप तप के
निखरी हूँ मै। …
देह तो इच्छा मात्र है ,
ह्रदय पहुँच से बाहर है ,
छूना बस एक किर्या है ,
स्पर्श तो संज्ञा है ।
कहने को देवी हूँ मै
नज़रों ने तो लूटा है ,
नभ में तारा नहीं
इस बार चाँद टूटा है ,
किताबों के कवर पर
खूब बिकी हूँ मै ,
सुनहले इतिहास में
कब लिखी हूँ मै.…… ।