गर पूछे कोई के दर्द क्या है, तो कहना के
ये जो तेरा मेरा रिश्ता है .....
गर पूछे कोई के ख्वाब क्या है , तो कहना
एक मुट्ठी जिन्दगी पाना है ....
गर पूछे कोई के हाल क्या है , तो कहना
हज़ार टुकड़े आईने में मेरा चेहरा है ....
गर पूछे कोई के मुलाक़ात क्या है , तो कहना
खुद को ढूँढ लूँ .....
गर पूछे कोई के बरसात क्या है , तो कहना
ये जो तेरा गम का दरिया है .....
गर पूछे कोई के आशना क्या है , तो कहना
दिल अभी ढूँढता है ....
गर पूछे कोई के नींद क्या है , तो कहना
दीवारोंसे बाते करता है .....
गर पूछे कोई के मै कहाँ हूँ , तो कहना
पलकें झुकाओ तो ज़रा .....
गर पूछे कोई के पाना क्या है , तो कहना
खुद को खोना ही है पाना ....
गर पूछे कोई के दोस्ती क्या है , तो कहना
आसमान भी रंग बदलता है ....
गर पूछे कोई के सांस क्या है , तो कहना
लब पे आया जो तेरा नाम ......
गर पूछे कोई के पैगाम क्या है , तो कहना
ढाई आखर कबीरा कह गए ......
Friday, April 30, 2010
Monday, April 12, 2010
आज मुझे अपनी याद आई ,
कहाँ भूली थी खुद को ,
किसी किताब की दूकान में रखी
उन तमाम किताबों के
कवर पे लिखे
सुनहरी नामों में ,
या शायद
ग़ालिब की ग़ज़ल के
बगीचे में
दर्द बनकर
अद्रश्य , अस्प्रश्य
जिसे महसूस कर न पाए ग़ालिब
या
कबीर के दोहों में
अजान बनकर गूंजती थी
अथवा राम नाम की माला के
एक मोती में बस्ती थी
या
गुलज़ार की त्रिवेणी की
वो तीसरी पंक्ति में
जो गंगा जमुना
बन न सकी
सरस्वती बनकर
लुप्त थी
या
अमृता के सपने का
वो भूला हिस्सा थी
जो बन न सका नगमा
बस दिखती रही सपना
भूला बिसरा सा कुछ ...
कहाँ स्वयं को छोड़ आई
आज मुझे अपनी याद आई ....
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