आज दिल ने फ़िर तमन्ना की ...कोई ग़ज़ल लिखी जाए ....शब्द ...! शब्द ...ह्म्म्म कहाँ से शुरू की जाए ....सागर , समंदर , आसमान , किताबें ,पेड़ , हवाएं , ....कहाँ से शुरू करूँ .....ये आसमान ये बादल... ये रास्ते... ये हवा ...
हरेक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने पे ...कई दिनों से शिकायत नही ज़माने से ....
ऊँची लहरों में मुझे कश्ती तैरना आ गया ,
साहिल से वादा निभाना आ गया ....
जिन्दगी अश्कों से आशना न थी ,
हमको भी गम छुपाना आ गया .....
बिछड़ने की बातें मत करो यारों ,
कह दो यादों का मौसम सुहाना आ गया ...
बाद मुद्दत के मिली है तन्हाई ,
ख़ुद से बातें करने का ज़माना आ गया ...
चाहतों की बातें हैं ये तो ,
वरना उसे क्यों काम पुराना याद आ गया ....