Tuesday, August 27, 2013

ये कैसी गर्म हवा है 
बहते आंसू ही सूख गए है 
तड़प उठी हैं पेड़ों की शाखें 
कहाँ अब बादल गए हैं। । 
नरमी लेकर आते थे 
दिल भीग जाता था अक्सर 
कोमल पांवों को अब 
चुभते पत्थर दे गए हैं। 
यूँ न कतराओ हमसे 
बीते मौसम लौट आओ 
परेशां है रात सारी 
दिन भी बुझ से गए हैं। ।