Monday, September 28, 2009

उस पार

सुनसान है जीवन की धारा
कौन लगाएगा किनारा
साँसों का उधार थी जिन्दगी
कब हमारी अपनी थी जिन्दगी
साँसों ने अवकाश लिया
उस पार जब किसी ने पुकारा
आमानत गिरवी थी पास मेरे
उसने वापस छुडा लिया
साँसों के दम पर मैंने
घरोंदा बनाया मिटटी का
घरोंदे से प्यार कर बैठे
साँसों को बिसरा दिया
खुशबूओं से सजा कर
मग्न रहती थी जिन्दगी
हर पल उम्मीद जगा कर
पल पल पग रखती जिन्दगी
हाथों की लकीरों में
किस्मत अधूरी मिली थी
दिल की धडकनों में
साँसें अधूरी मिली थी
तुम्हारे पास आते हैं
अब पूर्ण कर देना
क्षितिज दूर है मगर
मिलाप कर देना ....

Friday, September 18, 2009











जब तुमने छुआ था
होठों पे वो अहसास बाकी है

आंखों में तुम्हारी मुहब्बत का
नशा अभी बाकी है
ये सफर तनहा तय होता नहीं
रास्ता अभी बाकी है
ख्वाब में देखी थी जो
वो मुलाक़ात अभी बाकी है
जिस चांदनी में नहाये थे कभी
वो खुशबू अभी बाकी है
तुम्हारे आने से बिखरे थे जो
फिजाओं में वो रंग बाकी है
दिल पर तुम्हारी नज़रों का
जादू अभी बाकी है

Saturday, September 5, 2009

कुछ यूँ ही बैठे बैठे ....


वैसे तो भादों की पूर्णिमा के चाँद की सुन्दरता का ख़ास महत्त्व तो नहीं है फ़िर भी शायद पहली बार इस पूर्णिमा के चाँद को देखकर सुकून सा मिल रहा है ...सांवले आसमान में वो अकेला चाँद और उसके नीचे मैले से बादल की एक रेखा जो उसकी चांदनी से चमक रही है ...मानों किसी कविता की ख़ास पंक्तियों को अंडर लाइन कर दिया हो ....और इस गोल गोल चाँद से कुछ दूर पूरे आसमान में चमकता हुआ इकलौता तारा ....मेरी आंखों को क्यूँ खटक रहा है ...जलन हो रही है मुझे इससे ...ज्वार भाटा सा उठ रहा है ...वो उस चाँद के पास आने को बेताब नज़र आ रहा है ....जिस दिशा में चाँद में चाँद चलता जाता है वो सितारा भी उसके आकर्षण में बंधा साथ साथ चल रहा है ...कुछ कुछ उसे डर है चाँद को खोने का ...आकर्षण में तो मै भी बंध रही हूँ पर साथ साथ नहीं चल सकती हूँ ...और ये लो ...बादल की मैली सी पंक्तियाँ और उभर आयीं हैं और चाँद को अपनी कैद में ले रही हैं ...नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते ...क्या कुसूर है उस बेचारे का ...खोल दो ये हथकडियां ...और बंधन से मुक्त कर दो ...दिन भर की आग में तपे, जले , जाने कितने दिलों को ठंडक दे रहा होगा ...तुम्हे देखकर तो धरती की तृष्णा जाग्रत हो जाती है पर ये जो चाँद है न ...इसकी खुशबू दिलों को महका देती है ....तभी तो ये कितने ही कवियों की कल्पना का आधार बनता रहा है ....


तारों की भीड़ में

अमावास की पीर है जिन्दगी

मेरा चाँद आज फ़िर मुझसे रूठा है ...

ख्वाब सज़ा लेते पलकों पे

जिन्दगी रखती हाथों पे

अगर तुम मेरे साथ होते ...