Tuesday, March 31, 2009

अब कहाँ जाया जाए....

दुःख से हम अपने ही भर गए जब,
छलकने को थी
ये गगरी लबालब
पीड़ा अंतस समाती न थी ,
दुनिया खुशी के गीत गाती थी ,
कुछ खिले खिले से चेहरे ,
खुशियों में डूबे शब्द ,
होठों पर आकर गुनगुनाते थे ,
सर्द भरी भरी स्याह रातों में ,
गर्माहट का अहसास करते थे ,
ऐसे में बैठे हैं हम यहाँ ,
खुले आँगन में ,
आकाश के नीचे ,
......
क्यूँ न इस आकाश से कह दें
अपनी अंतस की पीड़ा ,
और मुक्त हो जायें ,
अपने द्वंदों से ,
पर ...
आकाश तो अभी अभी खाली हुआ है ,
रात भर बरसी थी
इसकी आँखें ,
लाल डोरे पड़े थे
सुबह तलक।
फ़िर....
किसी जंगल में जाकर ,
वृक्षों की कतारों से कह दें ,
पर ...
उन्होंने भी रात भर
दुःख बांटा होगा अपना ,
नही देना उनको और यातना,
कहीं गमो की आंच
से जल न जाएँ ,
अनकही बातें कहती शाखों पर ,
तरस यूँभी आ जाता है ,
कौन है यहाँ ,
जो सुने दुःख मेरा ,
कौन है जो बांटे अंतस की पीड़ा ,
ये कोमल गुलाब!
जो कांटो का सामना करते हैं ,
हर वक्त ख्वाब खुशी के देखा करते हैं ,
छुओ इनके गाल ज़रा
आंसू से भीगा पाओगे ,
न कही गई जो बात कभी,
वो ख़ुद ही जान जाओगे ,
आवरण ओढे बैठा हर शख्स ,
खुशियों का आयोजन करता है,
समंदर साथ रखकर अपने ,
इंसान प्यासा ही रहता है ,
ऐ , मेरी प्यारी आंखों ,
खोल दो दरवाज़े,
और,
सैलाब बह जाने दो,
समंदर रिक्त हो जाने दो ,
खुला खुला आँगन होगा ,
शून्य का प्रयोजन होगा,
पूर्णता का संगम होगा.....

Saturday, March 28, 2009

नंबर दो

पूरी कालोनी में ताईजी उपनाम से विख्यात सरोज आंटी को मै भी ताईजी ही कहती हूँ ....बुजुर्ग होने के नाते ही नही वरन एक समझदार महिला होने के नाते मै उनका ह्रदय से आदर करती हूँ........

उस दिन पार्टी ख़त्म होने के बाद हम सब ताईजी के साथ बैठे थे ..........कन्या भ्रूण हत्या , बेटे और बेटी में भेदभाव् जैसी सामाजिक समस्याओं का जिक्र चल रहा था .........ताईजी की पुत्रवधू कहने लगी ....मम्मी को तो लड़कियों से बहुत नफरत है .........वो तो कहती हैं की लड़कियों को पैदा ही नही होना चाहिए ............या मार दिए जाने की ख़बर पढ़ती हैं तो कहती हैं अच्छा हुआ ..........मै हैरान थी ये सब बातें सुनकर ..... उसकी बातें मै हजम नही कर पा रही थी ..........क्योंकि ताईजी को मै अपना आदर्श मानती हूँ ...........पर आज तो उनका एक नया ही रूप मेरे सामने था .........क्या बोलूं .....? कुछ समझ ही नही आ रहा था ..........पर यूँही खामोश तो नही बैठ सकती .........सभी चुप थे ........बुजुर्ग हैं .........क्या बोलें .........समझाने का भी कोई फायदा नही ...........आख़िर मैंने चुप्पी तोडी .........ताईजी ....! कम से कम मै तो आप से ऐसी अपेक्षा नही करती .........मैंने तो कभी सोचा भी नही था आप जैसी समझदार महिला भी लड़कियों के ख़िलाफ़ हो सकती है .......मानती हूँ अभी भी दुनिया में लड़कियों के साथ दुर्वयवहार किया जाता है .........पर आप तो ऐसा न सोचें .........कौन से काम हैं आज ..जो बेटियाँ नही कर सकतीं ........मैंने अल्पविराम लिया ही था .....ताईजी ने जो बोला ....उसे सुनकर मै तो क्या सभी की बोलती बंद हो गई ........और उन्होंने मुझे भी अपनी सोच पर दुबारा सोचने पर मजबूर कर दिया .......उन्होंने कहा ....इतनी सब तरक्की करने के बाद भी लडकियां कहाँ हैं .......क्या उन्हें समाज में वो अधिकार प्राप्त हैं जो लड़कों को ......घर हो या बाहर ...नम्बर एक तो लड़का ही रहता है .......और लडकियां नम्बर दो ........मै इसीलिए लड़कियों के जन्म पर रोती हूँ ........सचमुच ये बात कहते कहते उनकी आँख से आंसू बहने लगे थे ......

अब आप ही बताइए आप लड़कियों को किस पायदान पर रखते हैं ..........नुम्बर एक या ..........

Thursday, March 26, 2009

हिंदू नव वर्ष की शुभकामनायें

आशाओं का दीप जलता हो ,
आकान्शाओं का फूल खिलता हो ।
नज़रों से प्रेम झलकता हो ,
प्यार का गुलशन महकता हो ।
ह्रदय सुमन फ़िर खिलते हों ,
बच्चे हरदम हँसते हों ।
खेतों में बस्ती हरयाली हो ,
घर घर में चहकी खुशहाली हो ।
कार्मुक वहां पर बनते हों ,
महि गगन जहाँ पर मिलते हों ।
दुश्मनी की न बात हो ,
एकता का काव्य पाठ हो ।
प्यारा सा एक जज्बा हो ,
माटी पर तन मन वारा हो ।
दिलों में तिरंगे की तस्वीर हो ,
हर बच्चा इसकी तदबीर हो ।
फ़िर से ये आह्वान हो ,
देश की ऊँची शान हो ।
जन जन फ़िर जाग्रत हो ,
उन्नत सम्रध मेरा भारत हो ।

कल से संवत २०६६ शुरू हो रहा है । सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं ।

Tuesday, March 24, 2009

कुछ लम्हे प्रकृति के साथ ....

आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ,
हवाओं के संग आवारा बन फिरता रहा दिन भर ।
सुबह तो खूब बन ठनकर आया था ,
सब दिशाओं के मन को खूब भाया था ,
ज्यों ज्यों सजा रूप सलोना त्यों त्यों इतराया था ,
यौवन की रूत आते ही मदमाया दिन भर।
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ....
कभी पानी पर पाँव रखा ,
कभी पेडों पर दौड़ लगायी थी ,
कभी इस बादल के पीछे छुप कर ,
उस बादल को खूब छकाया था ,
मनमौजी मस्ताना यूँ ही कुलांचें भरता रहा दिन भर ....
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर .....
अब चाँद की बारी आई ,
सूरज तुमको जाना होगा ,
बड़े ही गंदले दीखते हो ,
नहा धो कर आना होगा ,
कल मिलने का वादा करते जाओ
रात भर विश्राम करेंगे ,
फ़िर मिलकर साथ काम करेंगे दिन भर ।
आज फ़िर सूरज मिटटी में खेला दिन भर ....
हवाओं के संग आवारा बन फिरता रहा दिन भर ....

Thursday, March 19, 2009

कलयुग के राम

कल पढ़ा
स्त्री की अग्नि परीक्षा
ली समाज के ठेकेदारों ने
जो तय की गई थीं
वर्जनाएं स्त्री के लिए
उनका उल्लंघन करने की जुर्रत
वो भी एक स्त्री होकर
उफ़....
राम राम राम ....
हाये अबला
ये तूने क्या कर डाला
परिणाम तो अब भुगतना पड़ेगा
अग्नि परीक्षा तो सीता ने भी दी थी
तू किस खेत की मूली है .....
सोचती हूँ
निर्णय पूर्णतय न्यायसंगत था
सौ कोडे और लगाने थे ,
थोड़े अंगारे और बरसाने थे
शूलों पर चलवाना था
इन चरित्रहीन स्त्रियों को
ऐसे ही छोड़ दिया तो
कल इतिहास क्या कहेगा
आने वाली पीडी को
क्या संदेश पहुंचेगा
इसीलिए फिर कहती हूँ
अग्नि परीक्षा उचित थी
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के कहने पर
वैदेही ने भी
अग्नि में प्रवेश किया था
अपनी पवित्रता का प्रमाण
जग को दिया था
पर .....
आज की सीताओं की
परीक्षा लेने वालों
अग्नि प्रज्वलित करने से पहले
अपने चोले में झांको
अपने अपने मुखौटे उतारो
और पहले
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तो बनो .....

Monday, March 16, 2009

armaan

जब भी खवाबों से जागो तो सवेरा मिले
जब भी हो चाहत कुछ पाने की वो हमेशा मिलें
खुशी वही होगी जो आँखों में दिखेगी
उसे खुशी मत समझो जब लब हिलें

Sunday, March 15, 2009

मैं समय हूँ.....

सुबह सुबह अखबार में ब्लॉग के बारे में
पढ़कर महसूस हुआ क्यूँ न में भी
पहला काम नाम क्या दूँ
फिर सोचा थीम क्या होगी, लिखूंगी क्या
बहुत नामों पर दिमाग घूमा कभी ये, कभी वो ....
फिर दिल ने कहा यह ठीक है....
पुखराज
यह मेरा पहला पोस्ट है तो बात
की जाय समय की ....
शुरुआत करते हैं यहाँ से
बुद्धू बक्से के छोटे परदे से
आसमान पे एक धब्बा उभरा
कुछ लकीरों से शुरू होकर
भाग्य चक्र में बदला
कुछ आँखे फिर चेहरे उभरे
कुछ खामोशी के बाद आवाज़ आई
मै समय हूँ.....
अरे...
तुम समय हो ...
तुम्हे तो कबसे ढूँढ रहे थे
बोलो अब तक कहाँ थे
आजकल बसेरा कहाँ करते हो
तुम्हारे आने जाने का रास्ता कौन सा है
किसके साथ उठते बैठते हो
सवालों पर सवाल
इंसानी फितरत
पर समय
गुमसुम और बेखयाल
परछाई तुम्हारी बन कर रहता था
प्रतीक्षा तुम्हारी करता था
रात रात भर जाग कर
सुबह से बातें करता था
मै तो हमेशा यहीं था
तुम ही नही थे ....
प्रतीक्षा में तुम्हारी थक गया हूँ
सूनी दीवारों के बीच मर गया हूँ
आज आए हो मुझसे पूछने
मै कहाँ था
तब तुम नही थे
अब मै नहीं हूँ
अब में कहीं नहीं हूँ
सबको मेरी ज़रूरत है
पर अब मै किसी के पास नही हूँ
तुमने मेरी हत्या की है
अब मै कहीं नहीं हूँ .....